दया पर संदेह

एक अमीर सेठ के यहां एक नौकरानी काम करती थी। सेठ अपनी नौकरानी से तो बहुत खुश था। लेकिन जब भी उसे कोई कटु अनुभव होता तो वो ईश्वर को अनाप-शनाप कहता और बहुत कोसता था।

एक दिन वो अमीर सेठ ककड़ी खा रहा था। संयोग से वो ककड़ी कच्ची और कड़वी थी। सेठ ने वो ककड़ी अपनी नौकरानी को दे दी। नौकरानी ने उसे बड़े ही चाव से खाया जैसे वो बहुत स्वादिष्ट हो! 

हैरान होकर उस अमीर सेठ ने पूछा,"ककड़ी तो बहुत ही कड़वी थी! भला तुम ऐसे कैसे खा गई?"

नौकरानी बोली,"आप मेरे मालिक हैं। रोज मुझे स्वादिष्ट भोजन देते हैं। अगर एक दिन कुछ बेस्वाद या कड़वा भी दे दिया तो उसे स्वीकार करने में भला क्या हर्ज है?"

अमीर सेठ अपनी भूल समझ गया कि अगर ईश्वर ने इतनी सुख-संपदाएं दी हैं और यदि कभी कोई कटु अनुदान या सामान्य मुसीबत दे भी दे तो भी उसकी सद्भावना पर संदेह करना बिल्कुल भी ठीक नहीं है।


तात्पर्य

असल में यदि हम समझ सकें, तो जीवन में जो कुछ भी होता है, वो सब ईश्वर की दया ही है और ईश्वर जो कुछ भी करता है, वो हमारे अच्छे के लिए ही करता है। हमें ईश्वर की दया और मेहर पर शक ना करते हुए, हर एक पल उसका शुक्रिया अदा करते रहना चाहिए।

(स्रोत: लोकप्रिय भारतीय जनश्रुतियाँ) 

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