पुणे के कस्टमस विभाग के कुछ गददार देशद्रोही सीनीयर अफसरों ने जानबूझ कर डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी को शूरवीरता के लिए पुरस्कार नहीं मिलने दिया!
निम्नलिखित बिंदुओं से पूरी तरह स्पष्ट है कि कैसे पुणे के कस्टमस विभाग के कुछ गददार देशद्रोही सीनीयर अफसरों ने जानबूझ कर डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी (ठाकुर शेर सिँह परमार) को शूरवीरता के लिए पुरस्कार नहीं मिलने दिया:
(१ ) १८-५-१९९१ के दिन भारत सरकार के ख़जाने में डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी के द्वारा ज़ब्त साढ़े तीन टन अवैध चाँदी जमा हो गई। इसके तुरंत बाद डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी को शूरवीरता हेतु पुरस्कार मिलना चाहिए था, परंतु ऐसा नहीं किया गया !
(२) २९-५ -१९९१ के दिन मुख़बिर को अग्रिम ईनाम की धनराशि पुणे कस्टमस के क्लेक्टर ने की। इसके तुरंत बाद डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी को शूरवीरता हेतु पुरस्कार मिलना चाहिए था, परंतु ऐसा नहीं किया गया !
(३) ०३ -०१-१९९२ के दिन पुणे के कमिशनर ने उक्त चाँदी प्रकरण को सरकार के पक्ष में एडजुडिकेट कर दिया। इसके तुरंत बाद डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी को शूरवीरता हेतु पुरस्कार मिलना चाहिए था , परंतु ऐसा नहीं किया गया ! ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पुणे कस्टमस के कुछ गद्दार राष्ट्रद्रोही वरिष्ठ अफसरों ने आपसी मिलीभगत करके तय कर लिया था कि डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी को शूरवीरता हेतु पुरस्कार नहीं मिलने देना है ! जब उन्हें डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी के ख़िलाफ़ विजिलेंस जाँच में कुछ नहीं मिला तो पुणे कस्टमस के इन कुछ गद्दार राष्ट्रद्रोही वरिष्ठ अफसरों ने आपसी मिलीभगत करके झूठी जाँच शुरू करवा दी कि मुख़बिर था ही नहीं ! पुणे कस्टमस के सब ईमानदार अफ़सर जानते थे कि डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी से नाइंसाफी की जा रही है , परंतु सब डर के मारे डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी का न्यायपूर्ण पक्ष नहीं ले पाए ! बाद में वेस्ट ज़ोन विजिलेंस मुंबई ने भी माना कि डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी के ख़िलाफ कुछ भी नहीं था ! परंतु, वेस्ट ज़ोन विजिलेंस मुंबई मुख़बिर के मामले को सही सही नहीं समझ पाया! २००६ में डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी को उनके key role को नजरअंदाज करके अन्यायपूर्ण ढंग से पुणे कस्टमस के कुछ गद्दार राष्ट्रद्रोही वरिष्ठ अफसरों ने आपसी मिलीभगत करके सिपाही से कम ईनाम सैंक्शन कर के अपनी भङास निकाल ली। डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी ने २००८ तक बहुत कोशिश की कि उन्हें न्याय मिले और इसीलिए सिपाही से कम धनराशि स्वीकार नहीं की। वर्ष २००८ में उन्होंने 'अंडर प्रोटेस्ट' उक्त धनराशि स्वीकार की इस आशा में कि उन्हें कभी न कभी भारत सरकार से न्याय मिलेगा , परंतु आज तक उन्हें न्याय नहीं मिला है ! नरेंद्र मोदी सरकार ने तो उनकी गुहार न सुन कर हद ही कर दी है !
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(१ ) १८-५-१९९१ के दिन भारत सरकार के ख़जाने में डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी के द्वारा ज़ब्त साढ़े तीन टन अवैध चाँदी जमा हो गई। इसके तुरंत बाद डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी को शूरवीरता हेतु पुरस्कार मिलना चाहिए था, परंतु ऐसा नहीं किया गया !
(२) २९-५ -१९९१ के दिन मुख़बिर को अग्रिम ईनाम की धनराशि पुणे कस्टमस के क्लेक्टर ने की। इसके तुरंत बाद डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी को शूरवीरता हेतु पुरस्कार मिलना चाहिए था, परंतु ऐसा नहीं किया गया !
(३) ०३ -०१-१९९२ के दिन पुणे के कमिशनर ने उक्त चाँदी प्रकरण को सरकार के पक्ष में एडजुडिकेट कर दिया। इसके तुरंत बाद डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी को शूरवीरता हेतु पुरस्कार मिलना चाहिए था , परंतु ऐसा नहीं किया गया ! ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पुणे कस्टमस के कुछ गद्दार राष्ट्रद्रोही वरिष्ठ अफसरों ने आपसी मिलीभगत करके तय कर लिया था कि डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी को शूरवीरता हेतु पुरस्कार नहीं मिलने देना है ! जब उन्हें डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी के ख़िलाफ़ विजिलेंस जाँच में कुछ नहीं मिला तो पुणे कस्टमस के इन कुछ गद्दार राष्ट्रद्रोही वरिष्ठ अफसरों ने आपसी मिलीभगत करके झूठी जाँच शुरू करवा दी कि मुख़बिर था ही नहीं ! पुणे कस्टमस के सब ईमानदार अफ़सर जानते थे कि डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी से नाइंसाफी की जा रही है , परंतु सब डर के मारे डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी का न्यायपूर्ण पक्ष नहीं ले पाए ! बाद में वेस्ट ज़ोन विजिलेंस मुंबई ने भी माना कि डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी के ख़िलाफ कुछ भी नहीं था ! परंतु, वेस्ट ज़ोन विजिलेंस मुंबई मुख़बिर के मामले को सही सही नहीं समझ पाया! २००६ में डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी को उनके key role को नजरअंदाज करके अन्यायपूर्ण ढंग से पुणे कस्टमस के कुछ गद्दार राष्ट्रद्रोही वरिष्ठ अफसरों ने आपसी मिलीभगत करके सिपाही से कम ईनाम सैंक्शन कर के अपनी भङास निकाल ली। डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी ने २००८ तक बहुत कोशिश की कि उन्हें न्याय मिले और इसीलिए सिपाही से कम धनराशि स्वीकार नहीं की। वर्ष २००८ में उन्होंने 'अंडर प्रोटेस्ट' उक्त धनराशि स्वीकार की इस आशा में कि उन्हें कभी न कभी भारत सरकार से न्याय मिलेगा , परंतु आज तक उन्हें न्याय नहीं मिला है ! नरेंद्र मोदी सरकार ने तो उनकी गुहार न सुन कर हद ही कर दी है !
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