रोटियां तीन दिन पुरानी थीं और भूख चार दिन - अध्यात्मिक कविताएँ

रोटियां तीन दिन पुरानी थीं, 

....और भूख चार दिन! 

वो गरीब बड़े आराम से खा गई

....क्योंकि रोटी भूख के मुकाबले ताजी थी!

शायद मैं इसीलिए पीछे हूंँ, 

....कि मुझे होशियारी नहीं आती! 

बेशक लोग ना समझें मेरी वफादारी

....मगर सहेलियों मुझे गद्दारी भी तो नहीं आती! 

अपनी हर फतेह पर इतना गुरुर मत कर, 

....जरा मिट्टी से भी पूछ कि

....आजकल सिकंदर कहां है? 

बैचेनियाँ बाजार में नहीं मिला करतीं सहेलियों, 

...बाँटने वाला ने वाला कोई बहुत नजदीकी होता है! 

औरत के जिस्म का सबसे खूबसूरत हिस्सा दिल है, 

...और अगर वो ही साफ ना हो तो 

....चमकता चेहरा किसी भी काम का नहीं! 

जीवन में सच्ची खुशी तब मिलती है

...जब हम दूसरों के लिए मदद का हाथ बढ़ाते हैं! 

याद रखिए कि किसी की मदद के लिए एक हाथ बढ़ाना, 

...ईश्वर को दो हाथ जोड़ने से अधिक मूल्यवान है! 

ज्ञान कितना ही पा लो, 

.... बेकार है जीवन गुरु बिन, 

रोटियां तीन दिन पुरानी थीं, 

....और भूख चार दिन! 

(स्रोत: भारतीय लोकश्रुतियाँ) 

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