भारतीय इतिहास के पन्नों में कुछ किरदारों को जबरन महान बना दिया गया, और कुछ सच्चे महानायकों को दफना दिया गया। वीर विनायक दामोदर सावरकर एक ऐसा ही नाम है जिसे आज़ादी के बाद, विशेषकर पंडित नेहरू और कांग्रेस ने सुनियोजित तरीके से बदनाम किया, ताकि नेहरूवाद चमके, और भारत का हिंदू चेतना से जुड़ा राष्ट्रवादी पक्ष धुंधला पड़ जाए।इस लेख में हम तथ्यों, दस्तावेज़ों और ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर नेहरू-कांग्रेस के षड्यंत्र को उजागर करेंगे, जो वीर सावरकर को "देशद्रोही", "क्षमायाचक" और "हत्या के षड्यंत्रकारी" के रूप में पेश करने के लिए रचा गया।तथ्यों और प्रमाणित स्रोतों के साथ पूरा लेख पढ़ें।👇
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1. वीर सावरकर: विचार, विद्रोह और वैचारिक युद्धसावरकर वह पहले क्रांतिकारी थे जिन्होंने 1909 में "पूर्ण स्वतंत्रता" का उद्घोष किया, जबकि कांग्रेस उस समय डोमिनियन स्टेटस तक सीमित थी।
उन्होंने "1857 का स्वतंत्रता संग्राम" को विद्रोह नहीं बल्कि राष्ट्रीय क्रांति का रूप दिया — जिसे अंग्रेज खुद खारिज करते थे।
अंडमान की सेलुलर जेल में कालापानी की सजा, वर्षों तक अकेले बैरक, यातनाएं और फिर भी राष्ट्रवाद से समझौता नहीं — यह उनकी असाधारण राष्ट्रभक्ति का प्रमाण था।
स्रोत:
1. Vikram Sampath, "Savarkar: Echoes from a Forgotten Past"
2. India Office Records, British Archives
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2. क्षमायाचिका या रणनीतिक चाल? कांग्रेस का झूठा प्रचार
ब्रिटिश जेल नियमों के अनुसार, किसी भी कैदी को सजा में राहत पाने के लिए क्षमा-याचना करनी होती थी — यह एक प्रक्रिया थी, न कि आत्मसमर्पण।
नेहरू समर्थित इतिहासकारों और कांग्रेस नेताओं ने इसे सावरकर की कायरता और अवसरवादिता कहकर प्रचारित किया।
जबकि गांधी जी ने खुद 1920 में ब्रिटिशों को लिखा: “If the Government releases political prisoners, they will not resort to violence again.”
स्रोत:
1. Government of India, Home Ministry Records
2. Selected Works of Mahatma Gandhi, Vol. 19
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3. नेहरू और गांधी हत्या केस: सावरकर को बलि का बकरा बनाना
नाथूराम गोडसे, जो गांधीजी के हत्यारे थे, पहले RSS और फिर हिंदू महासभा से जुड़े थे — लेकिन सावरकर से कोई सिद्ध संबंध नहीं पाया गया।
फिर भी नेहरू सरकार ने सावरकर को आरोपी बनाया, गिरफ्तार किया और केस चलाया।
सुप्रीम कोर्ट ने 1949 में सावरकर को निर्दोष घोषित किया, लेकिन कांग्रेस ने न तो खेद जताया और न ही सावरकर की छवि बहाल की।
स्रोत:
1. Gandhi Assassination Case Proceedings
2. Justice Kapur Commission Report, 1969
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4. हिंदू महासभा को खत्म करने की नेहरू की योजना
भारत विभाजन के बाद मुस्लिम लीग पाकिस्तान चली गई, और कांग्रेस के सामने एकमात्र प्रभावशाली राष्ट्रवादी पार्टी थी — हिंदू महासभा।
नेहरू को अंदेशा था कि हिंदू महासभा, जो हिंदू हितों और सावरकर की विचारधारा पर आधारित थी, यदि चुनावी चुनौती बनी तो कांग्रेस की सत्ता खतरे में पड़ सकती है।
अतः उन्होंने गांधी हत्या के बहाने हिंदू महासभा को "सांप्रदायिक" घोषित कर बहिष्कृत किया और सावरकर की गिरफ्तारी के बहाने पूरे संगठन को अपराधी ठहराया।
स्रोत:
1. The Tryst Betrayed – Arun Shourie
2. Constituent Assembly Debates, Vol. 7
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5. सावरकर का राजकीय बहिष्कार और जीवनपर्यंत अपमान
सावरकर की मृत्यु 26 फरवरी 1966 को हुई — न कोई राजकीय सम्मान, न कोई श्रद्धांजलि, और न ही किसी नेता का बयान।
जबकि वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लेखक, विचारक और संगठनकर्ता थे — नेहरू और उनके अनुयायियों ने उन्हें राजनीतिक अपराधी के रूप में चित्रित किया।
भारत सरकार ने सावरकर स्मृति स्थलों को सरकारी दर्जा नहीं दिया, उनके नाम पर कोई राष्ट्रीय पुरस्कार या स्मारक भी नहीं बनाया गया।
स्रोत:
1. Vikram Sampath, Vol. 2 – Savarkar: A Contested Legacy
2. Indian Parliamentary Records, 1966
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6. छद्म सेक्युलरिज़्म और वोट बैंक राजनीति का असली चेहरा
नेहरू के लिए "सेक्युलरिज़्म" मतलब था — हिंदू विचारधारा का निषेध और मुस्लिम तुष्टिकरण।
उन्होंने हिंदू महासभा को सांप्रदायिक, और मुस्लिम लीग और देवबंदी नेताओं को धर्मनिरपेक्ष घोषित किया।
हिंदू हितों की बात करने वालों को गोडसे के समर्थक, और नेहरूवादी सोच से भटकने वालों को संघी और सांप्रदायिक कहकर बदनाम किया गया।
स्रोत:
1. Sita Ram Goel, Time for Stock Taking
2. Arun Shourie, Eminent Historians
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निष्कर्ष:
वीर सावरकर न सिर्फ़ आज़ादी के सच्चे नायक थे, बल्कि वे उस राष्ट्रवाद के प्रतीक थे जिसे कांग्रेस हमेशा दबाना चाहती थी।
नेहरू और कांग्रेस ने सत्ता के लालच में न सिर्फ़ एक महापुरुष को बदनाम किया, बल्कि भारत के हिंदू राष्ट्रवाद की जड़ों को कमजोर किया।
आज जब राष्ट्र पुनः अपने मूल की ओर लौट रहा है, तो इतिहास के इस सबसे बड़े राजनीतिक छलावे को उजागर करना राष्ट्रधर्म है।
क्या हम सावरकर को सिर्फ इसलिए भूल जाएं कि उन्होंने कांग्रेस की लाइन नहीं पकड़ी?
समय आ गया है — जब हम नेहरूवादी झूठों से बाहर आकर सच्चे नायकों को पहचानें और उन्हें उचित स्थान दें। 

प्रस्तुतकर्ता
आशुतोष पाणिग्राही
(स्वतन्त्र सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विचारक, चिंतक, एवम् विश्लेषक)
X हैंडल: @SimplyAsutosh
संपादकीय समालोचना:
- कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने विनायक दामोदर सावरकर के जीवन निर्वाह के लिए मासिक सरकारी पेंशन लागू करवाई थी जो कि उस समय के हिसाब से काफी सम्मानजनक धनराशि थी।
- कांग्रेस के नेता और वर्तमान में राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरद पवार ने भारतीय इतिहास में पहली बार विनायक दामोदर सावरकर को वीर कह कर संबोधित किया था। यह विनायक दामोदर सावरकर का सम्मान ही था।
- कांग्रेस नेत्री और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने विनायक दामोदर सावरकर के सम्मान में डाक टिकट जारी किया था।
- हालांकि यह सत्य है कि विनायक दामोदर सावरकर को भारतीय सरकार और कांग्रेस से सम्मान तथा अन्य सुविधाएँ जीवन में काफी देर से मिली थी।
(Note: The Aatmeeyataa Patrekaa have no vested partisan goals in publishing this enlightening paper. The sole objective is to inform, enlighten, and educate truthfully the policymakers and the public all alike all over the world about the potential and kinetic effects of various strains of politic thoughts on Indian and global welfare.
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