श्रेष्ठ व्यक्ति एक दूसरे के सद्गुणों को अपनाते हैं. वे दूसरे के अवगुणों की ओर ध्यान नहीं देते हैं. वे अहंकार से कोसों दूर रहते हैं.
वे कभी भी ढिंढोरा नहीं पीटते हैं कि उनके समान इस श्रृष्टि में अन्य कोई प्राणी है ही नहीं. वे कभी भी मन में इस बात को नहीं लाते हैं कि अब उन्हें किसी अन्य प्राणी से कुछ भी सीखने की आवश्यकता शेष नहीं है. अपितु, वे अपने हृदय और बुद्धि के द्वार सदैव खुले रखते हैं जिनसे हो कर नूतन सद्विचारों का सतत शाश्वत प्रवाह उनके पंच भौतिक शरीर में होता रहता है. यह प्रवाह उनके जीवन में नई ऊर्जा का संचार करता रहता है.
कहने की आवश्यकता नहीं कि नई सकारात्मक ऊर्जा उनके जीवन में परम आनंद की मधुर मधुर महक की अविरल धारा बहा देती है.
वे कभी भी अपनी श्रेष्ठता को औरों की श्रेष्ठता से अधिक नहीं आंकते हैं. वे कभी नहीं सोचते कि वे अन्य दूसरे श्रेष्ठ व्यक्ति से अधिक श्रेष्ठ हैं.
तभी तो वे अत्यंत सहजता, सरलता और विनम्रता से दूसरे श्रेष्ठ व्यक्ति के सद्गुणों को अपना लेते हैं. दूसरों के सद्गुणों को अपनाने के लिए वे प्रसन्नता से दूसरे श्रेष्ठ व्यक्ति का ध्यान करते हैं, जैसे कि विष्णु और महेश एक दूसरे का ध्यान करते हैं!
व्रतमान के संदर्भ में विश्व के सभी शासकों को चाहिए कि वे एक दूसरे के सदगुणों को अपनाएं. जैसे कि अमेरिका के शासक को रुस के शासक के सदगुणों का ध्यान करना चाहिए. ठीक इसी भाँति रूस के शासक को भी अमेरिका के शासक के सदगुणों का ध्यान करना चाहिए. इससे पृथ्वी पर मानवीय- शांति की असीम सम्भावना को और अधिक बल मिलेगा. और तब भविष्य में संभवतः एक दिन ऐसा भी आये जब पूरी पृथ्वी पर मानवीय शांति की पूर्ण स्थापना हो ही जाए!
- डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी
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