सरदार जी की 'बारह कन्याएं' - कहानी

मुहल्ले की औरतें कन्या पूजन के लिए तैयार थी, मिली नहीं कोई लड़की, उन्होंने हार अपनी मान ली !

फिर किसी ने बताया - "अपने मोहल्ले के है बाहर जी, बारह बेटियों का बाप, है सरदार जी!"

सुन कर उसकी बात, हँस कर मैंने यह कह दिया -  "बेटे के चक्कर में सरदार, बेटियां बारह कर के बैठ गया!"

पड़ोसियों को साथ लेकर, जा पहुँचा उसके घर पे, 'सत श्री अकाल' कहा मैंने प्रणाम उसे कर के!

"कन्या पूजन के लिए आपकी बेटियां घर लेकर जानी हैं, आपकी पत्नी ने कन्या बिठा लीं या बिठानी हैं?"

सुन के मेरी बात बोला सरदार जी ने कहा, "आपको कोई गलतफहमी हुई है, किसकी पत्नी जी? मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है!"

सुन के उसकी बात, मैं तो चकरा गया, बातों-बातों में वो मुझे क्या-क्या बता गया!

"मत पूछो इनके बारे में, जो बातें मैंने छुपाई हैं, क्या बताऊँ आपको कि मैंने कहाँ-कहाँ से उठाई हैं !

माँ-बाप इनके हैवानियत की हदें सब तोड़ गए - 

मन्दिर, मस्ज़िद और कई हस्पतालों में थे छोड़ गए!

बड़े-बड़े दरिंदे हैं अपने इस जहान में,

यह जो दो छोटियां हैं मिली थी मुझेे कूड़ेदान में!

इसका बाप कितना निर्दयी होगा

जिसे दया ना आई नन्हीं सी जान पे,

हम मुर्दों को लेकर जाते हैं और

वो जिन्दा ही छोड़ गया इसे श्मशान में!

यह जो बड़ी प्यारी सी है, 

थोड़ा लंगड़ा के चल रही है,

मैंने देखा के तलाब के पास 

एक गाड़ी खड़ी थी!

बैग फेंक कर भगा ली गाड़ी, 

जैसे उसे जल्दी बड़ी थी!

शायद उसके पीछे कोई 

बड़ी आफ़त पड़ी थी!

बैग था आकर्षित, 

मैंने लालच में उठाया था!

देखा जब खोल के, 

आंसू रोक नहीं पाया था!

जबरन बैग में डालने के लिए, 

उसने पैर इसके मोड़ दिये थे!

शायद उसे पता नहीं चला

कि उसने कब पैर इसके तोड़ दिये थे!

सात साल हो गए इस बात को, 

ये दिल पे लगा कर बैठी है!

बस गुमसुम सी रहती हैं, 

दर्द सीने में छुपा कर बैठी है!"

सुन के बात सरदार जी की, 

सामने आया सब पाप था!

लड़की के सामने जो खड़ा था,

कोई और नहीं वो उसका बाप था!

देखा जब पडोसियों के तरफ़, 

उनके चेहरे के रंग बताते थे!

वो भी किसी ना किसी लड़की के, 

मुझे माँ-बाप नजर आते थे!

दिल पे पत्थर रख कर, 

लड़कियों को घर लेकर आ गया!

बारी-बारी से सब को हमने 

पूजा के लिए बिठा दिया!

जिन हाथों ने अपने हाथ से 

तोड़े थे जो पैर जी!

टूटे हुए पैरों को छू कर 

मांग रहे थे ख़ैर जी!

क्यों लोग कुछ मार बेटी खुद की,

दूसरों की पूजना चाहते हैं?

क्यों लोग कुछ बेरहमी, 

कन्या पूजन ऐसे ही मनाते हैं...?"

प्रस्तुतकर्ती:
सुजाता कुमारी 
प्रस्तुतिकरण की दिनांक: २७ अक्टूबर,२०२०
प्रकाशन की दिनांक: १३ अप्रैल,२०२१
(स्रोत: भारतीय जनश्रुतियां)


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