"........चींटी के पग नूपुर बाजे.....! "
अर्थात - कबीर जी इस छोटी सी लाइन में समझा रहे हैं- "एक चींटी कितनी छोटी होती है, अगर उसके पैरों में भी घुंघरू बांध दें तो उसकी आवाज को भी परमात्मा सुनता है।
फिर यदि आपको लगता है कि आपकी पुकार परमात्मा नहीं सुन रहे हैं, तो ये आपका वहम है या फिर आपने अभी तक उस परमात्मा के स्वभाव को जाना ही नहीं है।
कभी प्रेम से उनको पुकारो तो सही! कभी उनकी याद में आंसू गिराओ तो सही! फिर एहसास होगा कि केवल एक वही है, जो सुनता है!"
एक समय की बात है!
परमात्मा की एक बहुत प्यारी सी भक्त थी।
उसने कई सालों तक लगातार पाठ किया।
अंत में परमात्मा ने उनकी परीक्षा लेते हुए कहा, "अरी भक्त! तू सोचती है कि मैं तेरे पाठ से खुश हुँ तो ये तेरा वहम है। मैं तेरे पाठ से बिल्कुल भी प्रसन्न नहीं हुआ हूं!"
जैसे ही भक्त ने यह सुना तो वो नाचने लगी और झूमने लगी।
परमात्मा बोले,"अरे! मैंने कहा कि मैं तेरे पाठ करने से खुश नही हूं और तू नाच रही है!"
भक्त बोली," हे मेरे प्रभु! आप खुश हो या नहीं हो, ये बात मैं नहीं जानती।
...लेकिन, मैं तो खुशी से इसलिए नाच रही हूँ कि आपने मेरा पाठ सुना तो सही...! "
ये होता है .....भाव!
परमात्मा ने खुश होकर अपनी उस भक्त को गले से लगा लिया और ढे़र सारा आशीर्वाद दिया।
प्रस्तुतिकर्ति:
सुश्री सुजाता कुमारी, सर्वोपरि संपादिका एवम् प्रभारी सम्पादकीय इकाई (आत्मीयता पत्रिका)
X - @sujatakumarika
(स्रोत: सर्वाधिक प्रचारित लोकप्रिय भारतीय जनसाहित्य, कबीर सागर एवं अन्य सत्साहित्य; इंटरनेट, सोशल मीडिया, व्हाट्सएप्प, एक्स पर मुफ़्त में उपलब्ध छायाचित्र, चलचित्रिका और अन्य सामग्री)
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