घोड़ी

मुगल काल में किसी भी हिन्दू को घोड़ी पर चढ़ने की मनाही थी।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा हम घोड़े रखेंगे----  रोक सकते हो तो रोको!!!!

उसी समय में तवे थे वो उल्टे थे, तो गुरु साहिब ने बड़ी बड़ी लोह, (बड़े तवे) जो आज भी आप लंगर में देखते हैं वो लगवाए और कहा:-

रोक सकते हो तो रोक लो! 

उस समय शादी के वक्त किसी भी हिन्दू को पगड़ी पहनने पर सजा थी!

गुरु गोबिंद सिंह साहिब ने दुमाले सजाए और कहा रोक सको तो रोक लो! 

उस समय किसी भी झंडे को लगाना गुनाह था...गुरु गोबिंद सिंह साहिब ने बड़े निशान साहिब लगाए।

उस समय ढोल आदि की मनाही थी सो गुरु साहिब ने नगाड़े रखे की हम ये बजायेंगे ओर इसकी आवाज मुगलिया सल्तनत को हिला गई!

इसको समझा जाये तो ये एक

 वंगार थी जुल्म के खिलाफ! 

निशान साहिब को कोई धर्म से जुड़ा कह सकता है पर इसकी भी तह में जाने की जरूरत है।

निशान साहिब प्रतीक है एक यात्री के लिए, जरूरतमंद के लिए, आश्रित के लिए, कि उसे वहां रहने को जगह मिल जाएगा, खाने के लिए मिलेगा, वो वहां रात बिता सकता है, ताकि  दूर गांव में आये को दूर से निशान साहिब नजर आ जाये और उसकी जरूरत पूरी हो जाएगी।

महाराजा रणजीत सिंह से पहले बाबा बघेल सिंह ने दिल्ली को 17 बार जीता ओर यहां निशान साहिब लगाया।

बिल्ली मार देना वाली कहावत 17 बार दिल्ली जीतने के बाद ही मशहूर हुई।

इसमे एक बड़ी दिलचस्प बात और आती है की खुद गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी ने 14 लड़ाइयां लड़ी पर एक भी लड़ाई, किसी अपने राज को बढ़ाने, बचाने व स्थापित करने के लिए नही थी, यह बहुत बड़ी बात है जो समझनी जरूरी है।

सो निशान साहिब निशान है 

दया का,

सेवा का,

आश्रय का!


निशान साहिब के संकल्प में केवल:

🚩भला है,

🚩प्रेम है, 

🚩स्वागत है,

🚩खुशबू है....परमात्मा की ⚘⚘🌷.....! 

(स्रोत: पंजाबी जनश्रुतियाँ) 

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