एक राजा का परम कर्तव्य होता है अपनी प्रजा की रक्षा करना। इसी के लिए वह राज करता है। इस तरह वह राजक भी कहलाता है। जब वह इसमें विफल होता है तो माना जाएगा कि वह अराजक हो गया है।
ऐसा होने पर प्रजा भी विवश हो कर उस का राज मानने से इंकार कर देती है। तब राजा और उसके चाटुकार चिल्लाते हैं कि प्रजा अब अराजक हो गई है। राजा का शासन, प्रशासन और चाटुकार ऐसी प्रजा को अराजक तत्व कहने लगते हैं।
जब भी किसी देश में किसान-आंदोलन जैसे आंदोलनकारियों को अराजक तत्व कह कर उन आंदोलनों को शासक दबाने की चेष्टा करता है तब इसमें उस शासक की अराजकता छिपी होती है। दूसरे शब्दों में, वह शासक आंदोलनकारियों को अराजक तत्व का लेबल चिपका कर प्रजा के हितों की रक्षा करने में अपनी विफलता का ही ढिंढोरा पीटता है।
अगली बार जब आपको मीडिया में कोई यह कहता मिले कि फलां फलां आंदोलन में अराजक तत्व घुस गए हैं तो समझ लेना कि उस नालायक शासक से जनता बहुत परेशान हो गई है।
वह अब उस शासक की शासन करने की योग्यता में विश्वास खो बैठी है। इसलिए उसने कानून अपने हाथ में ले लिया है और जनता अपना रोष प्रकट करने के लिए तोडफोड आरंभ कर देती है। ऐसे अक्षम शासक को तुरंत सुधर जाना चाहिए या सिंहासन से उतर जाना चाहिए।
- स्वामी मूर्खानंद जी "चाणक्य"
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