स्वयं को धोखा न दें
वृद्धावस्था में भक्ति करेंगे, गृहस्थी की जिम्मेदारियों से मुक्त होने पर भक्ति करेंगे, किसी तीर्थ स्थान पर कुटिया बनाकर भक्ति करेंगे, किसी एकांत स्थान में भक्ति करेंगे या/और कुछ वर्षों बाद केवल भक्ति ही करेंगे।
ये सभी बातें खुद से धोखा करने जैसी हैं।
सत्य तो यह है कि संसार में मन बहुत ही ज्यादा रमता है।
कुछ और भोग लें, फिर ये सब मिले न मिले।
अभी तो बहुत समय है पास में भक्ति तो कभी भी हो सकती है।
लेकिन, ऐसा नहीं है।
काल का या परिस्थिति का कोई भी भरोसा नहीं है।
भक्ति तो केवल अभी ही हो सकती है जब हम स्वस्थ हैं और ये बात हमें अच्छी तरह से गांठ बांध लेनी चाहिए।
श्वासों का पता नहीं है और इस क्षणभंगुर शरीर का भी कुछ पता नहीं है, तो फिर किस आधार पर हम अपने आपको धोखा दे रहे हैं।
हम भोगों को नहीं भोग रहे हैं बल्कि भोग ही हमें भोगते हैं।
तात्पर्य यह है कि दुनियादारी के जो कुछ भी बहुत ही जरूरी काम-काज हैं, उन्हें करते हुए हमें अधिक से अधिक समय सिर्फ और सिर्फ भजन-सिमरन को ही देना है।
(स्रोत:अज्ञात)
(Foto: Courtesy www.tanishq.co.in)
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