जीवन झूठ है और मौत सच्चाई है!!!
जीवन झूठ क्यों है?
क्योंकि जीवन सभी को नहीं मिलता है। कुछ जीव तो गर्भ में आते ही मारे जाते हैं, कुछ गर्भ के नौ महीने के सफर में ही मर जाते हैं और कुछ जन्म के समय ही मर जाते हैं, लेकिन मौत सभी को मिलती है।
जिस तरह से हम कोई भी नौकरी ज्वाइन करते हैं तो रिटायरमेंट की तिथी उसी दिन निकाल ली जाती है, इसी तरह से जब यह जीव आता है तो इसकी मौत की तिथि व दिन निश्चित हो जाता है।
महात्मा बुद्ध ने भी अपने काफिले में एक बुद्धिजीवी से पूछा था- क्या मौत सभी की होती है?
तो उस बुद्धिजीवी ने जवाब दिया- महात्मा जी! कोई भी घर ऐसा नहीं बचा है जिसमें आज तक किसी की भी मौत ना हुई हो।
संत-महात्मा अपने जीवों को यही समझाते हैं कि यहां जो जोड़ी बनती है वो टूटने के लिए ही बनती है। कोई हमें छोड़ कर चला जाता है और किसी को हम छोड़ कर चले जाते हैं। लेकिन जिसकी जोड़ी टूटती है और जोड़ी टूटने का दुख क्या होता है, ये वही जान सकता है।
मीराबाई जी ने भी दुखी होकर यही कहा था- मैं वह जोड़ी नहीं बनाना चाहती हूं जो टूट जाए।
इसलिए वो मुक्ति पाने के लिए गुरु के पास गई थीं, क्योंकि वो जानती थीं कि अमर जोड़ी तो केवल गुरु और शिष्य की ही है, बाकी सभी जोड़ियां तो टूटने के लिए ही बनी हैं।
ओड़ आज तक किसी ने नहीं निभाई है। ओड़ तो केवल सत्गुरु ही हैं, जो इस जीव की निभा सकते हैं।
अब तो हमें मनुष्य जीवन में आ गए इन जोड़ियों के भोग तो भोगने ही पड़ेंगे। लेकिन आगे ऐसी भक्ति व करनी करके चलें, ताकि ये भोग फिर ना भोगने पड़ें।
"गरु शिष्य की जोड़ी हंसा,
जग में अमर कहाई रे!
सत शब्द और हंस की जोड़ी,
-काल तोड़ नहीं पाई रे!!"
(स्रोत: भारतीय लोक साहित्य)
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