भजन-सिमरन करने सेे कर्मों का भुगतान - अध्यात्म

भजन-सिमरन करने सेे कर्मों का भुगतान

एक बार राजा जनक घूमते-घूमते हुए उन लाखों रूहों के पास पहुंच जाते हैं, जिन्हें बहुत ज्यादा दर्दनाक यातनाएं दी जा रही थीं।
वे उनके ऊपर होते हुए जुल्मों से दुखी होकर धर्मराज से बोले- महाराज! क्या इनके कर्मों का कोई समाधान हो सकता है?
धर्मराज बोले- हां राजन! हो सकता है, यदि कोई भी‌ व्यक्ति अपने प्रतिदिन किए गए भजन-सिमरन का फल इन रूहों को दे दे, तो इनके सभी बुरे से भी बुरे कर्मों का भुगतान हो सकता है।
यह सुनकर राजा जनक बोले- महाराज! मैं अपने भजन-सिमरन का फल इन रूहों को देने को तैयार हूं।
यह सुनकर धर्मराज ने तराजू मंगवाया और राजा जनक से बोले- एक तरफ मैं रूहों को रखता हूं और दूसरी ओर आपके द्वारा किए गए भजन-सिमरन को रखता हूं।
जैसे ही तराजू के एक तरफ एक पल भी किया हुआ भजन-सिमरन रखा और दूसरी तरफ रूहों को रखना प्रारम्भ किया, तो वहां पर रखी हुई वे लाखों रूहें एक बार में ही अपने पाप कर्मों से मुक्त हो गईं।
इसीलिए कलयुग में हमारे सत्गुरू ने हमें प्रतिदिन और नियमित भजन-सिमरन करने का एक बहुत ही सरल समाधान बताया है, जो हमें नित-प्रतिदिन और बेनागा करते रहना चाहिए, जिससे हमारे सभी दुखों का समाधान हो जाएगा।

हम न बोलें, फिर भी वो सुन लेता है,
इसीलिये उसका नाम परमात्मा है।
और वो न बोले, फिर भी हमें सुनाई दे,
उसी का नाम श्रद्धा है।।

मालिक (परमात्मा) को पाने के लिए सत्गुरु जरुरी हैं।
बुरे कर्म मिटाने के लिए सेवा जरूरी है।
आत्मा की शांति के लिए भजन-सिमरन जरूरी है।
और चौरासी से मुक्ति के लिए नाम जरूरी है।

प्रस्तुतकर्ती:
सुजाता कुमारी 
(स्रोत: भारतीय जनश्रुतियां)

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