परमात्मा की दरगाह में केवल और केवल प्रेम ही कबूल होता है और अन्य कोई भी वस्तु वहां पर स्वीकार नहीं होती है। परमात्मा को ना तो दौलत से, ना तो ज्ञान से, ना तो बुध्दि से और ना ही मनमर्जी की तरह-तरह की भक्ति से प्रसन्न किया जा सकता है। परमात्मा को तो केवल और केवल प्रेम से ही प्रसन्न किया जा सकता है।
कुछ लोग रात-रात भर जागकर मनमर्जी के किसी भी नाम का सिमरन करते रहते हैं और कुछ लोग कई दिनों तक व्रत रखते हैं परंतु उनमें से कोई भी उस परमात्मा के दरबार में नहीं पहुंच पाता है।
असल में परमात्मा को पाना कोई हंसी-मजाक का विषय नहीं है। परमात्मा के घर का सही रास्ता केवल एक पूर्ण संत ही बता सकते हैं।
इसलिए हमें किसी कामिल मुर्शिद (पूर्ण संत) के दर का भिखारी बन जाना चाहिए और उस मुर्शिद से परमात्मा के इश्क की दात मांग लेनी चाहिए और फिर हमें परमात्मा के दर की समझ आ जाएगी।
संत-महात्मा समझाते हैं- जिंदगी एक खुली किताब के समान है, जिसके पन्ने हर दिन पलट रहे हैं। हवा चले न चले, दिन पलटते ही रहते हैं और जिसमें हम कभी खुशी का आभास करते हैं तो कभी गम का। ये जो वक्त है न, ये कभी भी और किसी के लिए भी ना तो रुका है और ना ही कभी रुकता है। ये तो बस लगातार अपनी धुरी पर चलता ही रहता है। हम भी इस जहान में एक मुसाफिर की भांति ही आए हैं, तो क्यों ना इस अनमोल जनम में एक पूर्ण संत द्वारा बताए हुए मार्ग पर चलकर और परमात्मा के नाम का भजन-सिमरन करते हुए इस आवागमन के बंधन से मुक्त होकर सदा-सदा के लिए हम अपने निज घर यानि कि परमात्मा के चरणों में वापिस पहुंच जाएं।
(स्रोत: भारतीय जनश्रुतियाँ)
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