सत्गुरु का लगातार ध्यान करना ही मालिक (परमात्मा) का दर्शन करना है। - अध्यात्म

सत्गुरु का लगातार ध्यान करना ही मालिक (परमात्मा) का दर्शन करना है।
हम भले ही सत्गुरु से दूर बसते हैं पर उनका ध्यान करने से हमारी आत्मा, शब्द रूपी घोड़े पर सवार होकर अपनी इच्छा से उनके पास जा और आ सकती है।
जब शिष्य हर पल अपने अंदर सत्गुरु के ध्यान में लगा रहता है तो वो मालिक उसके ह्रदय रूपी घर में ही प्रकट हो जाता है।
रोज-रोज भजन-सिमरन करने से, धीरे-धीरे हमारे अंदर इतनी सहनशीलता आ जाती है कि हम बिना अपना संतुलन खोए ही जीवन में आने और वाले किसी भी उतार-चढ़ाव का सामना करने लगते हैं।
हमें इस बात का ज्ञान होने लगता है कि जो कुछ भी हो रहा है वो हमारे कर्मों के अनुसार ही हो रहा है, और सत्गुरु हमेशा हमारे अंग-संग ही हैं।
(स्रोत:अज्ञात)
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