जानिए कि क्यों डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी को अशोक चक्र से वंचित किया गया...!


डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी को फरवरी 1991 में रत्नागिरी के असिसटेंट कमीशनर ऑफ कस्टम श्री कारखानीस ने कहा - "परमार! तुम यह लिख कर दे दो कि कोई ईनफोरमर (खबरी) नहीं था! तुम पैट्रोलिंग कर रहे थे और अचानक तुमने समगलरों से चाँदी पकङ ली! ऐसा करोगे तो बहादूरी के लिए तुम्हारा नाम राष्ट्रपति पदक के लिए भेज दिया जाएगा!"


परंतु, डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी ने सच का साथ दिया! उन्होंने यह लिखने से साफ मना कर दिया कि  कोई ईनफोरमर (खबरी) नहीं था क्योंकि उन्होंने समगलरों से 2.5 करोङ की चाँदी, मुखबिर की सूचना के आधार पर बनाई गई रणनीति के तहत ही, पकङी थी!
साथ ही डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी यह भी चाहते थे कि उक्त केस में उनके साथी वरिष्ठ कस्टम इंस्पेक्टर श्री राजकुमार लाल को भी संबंधित इंटेलिजेंस गैदरींग में निभाए गए महत्वपूर्ण भाग (Role) के लिए पूरा श्रेय मिले! डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी नहीं चाहते थे कि किसी को उसका हक न मिले!
बदले की भावना से भर कर रत्नागिरी के असिसटेंट कमीशनर ऑफ कस्टम श्री कारखानीस ने डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी का नाम राष्ट्रपति पदक के लिए नहीं भेजा! वर्ष 1990-91 की डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी की एनुअल कॉनफीडेंसियल रपट (Annual Confidential Report) जानबूझकर खराब की गई और उनकी परफॉरफेंस को 'वेरी गुड ' से घटा कर 'गुड ' कर दिया गया! साथ ही, झूठी विजिलैंस जाँच शुरू करवा दी कि उक्त केस में कोई भी मुखबिर नहीं था! पहले पुणे, बाद में वेस्ट जोन मुंबई के लेवल पर!
वेस्ट जोन मुंबई विजिलैंस ने भी जानबूझकर मामले को लटका दिया और आगे जाँच नहीं की!
तब विवश हो कर डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी ने सारे प्रकरण से तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी के सांसद और जशपुर राजघराने के वारिस श्री दिलीप सिंह जूदेव जी को अवगत करवाया जिन्होंने 1998 में तत्कालीन भाजपा सांसद और वर्तमान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज चौहान को केंद्रीय वित्त मंत्री श्री यशवंत सिन्हा जी के पास डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी की पूरी केस फाइल के साथ भेजा
श्री दिलीप सिंह जूदेव जी ने डॉ
स्वामी अप्रतिमानंदा जी को उनकी अप्रतिम बहादुरी व कर्तव्यपरायणता हेतु भारत के शांति-काल के सर्वोच्च पुरस्कार अशोक चक्र व २५ लाख रूपए की धनराशि से सम्मानित करने के लिए केंद्रीय वित्त मंत्री श्री यशवंत सिन्हा जी को विशेष पत्र लिखा!
श्री शिवराज चौहान ने श्री यशवंत सिन्हा जी को पूरी स्थिति की गंभीरता से अवगत करवाया! फलस्वरूप,
विजिलैंस ने मजबूर हो कर पूरे प्रकरण की जाँच को आगे बढ़ाया! 
परंतु, वेस्ट जोन मुंबई विजिलैंस के सीनियर अधिकारियों ने डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी से हुए अन्याय को न समझ कर उनसे बदले की भावना से भर कर बर्ताव किया जिसका पता उन्हें वेस्ट जोन मुंबई विजिलैंस के एक जूनियर जाँच अधिकारी से पता चला ।
उक्त जूनियर जाँच अधिकारी ने डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी को बताया था - "...परमार जी! सीनियर अफसर नाराज हैं कि आप यशवंत सिन्हा तक चले गए! सो, अब
आपको न्याय मिलेगा - इसकी कोई गारंटी नहीं है!"

वेस्ट जोन मुंबई विजिलैंस के अफसर डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी से ईनफोरमर के बारे में सारी जानकारी चाह रहे थे!
जबकि ईनफोरमर के बारे में जानकारी को पूरी तरह गोपनीय रखना राष्ट्र-हित में ठीक वैसे ही अति आवश्यक है जैसे कि भारतीय सरकार विदेश से आयातित डिफेंस उपकरण के सामान की कीमत को किसी को भी नहीं बता सकती है क्योंकि कीमत को सार्वजनिक करने से शत्रु-राष्ट्र को उस विदेश से आयातित डिफेंस उपकरण की क्षमता का पता चल जाएगा जो हमारे राष्ट्रीय हितों हेतु पूर्णतः घातक हो  सिद्ध सकता है!
डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी ने ईनफोरमर के बारे में ईनफोरमर की गोपनीयता बरकरार रखते हुए संबंधित सब जानकारी वेस्ट जोन मुंबई विजिलैंस के अफसरों को दी! वेस्ट जोन मुंबई विजिलैंस के अफसरों ने अपना पीछा छुङाने और उनसे बदला लेने के लिए
 जानबूझकर त्रुटिपूर्ण निष्कर्ष निकाला कि केस में कोई भी ईनफोरमर नहीं था और  GREY AREA की मनगढंत बात कह घाव पर और अधिक नमक छिङक दिया...!
गनीमत रही कि वेस्ट जोन मुंबई विजिलैंस के अफसरों ने डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी के KEY ROLE को नहीं नकारा!
बाद में पुणे के गददार सीनियर कस्टम अफसरों ने मिली-भगत कर और घिनौना षड्यंत्र रच कर डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी के  KEY ROLE को अनदेखा कर  उन्हें नीचा दिखाने के लिए उस सिपाही को उनसे ज्यादा ईनाम दे दिया जिस सिपाही को वह अपनी सूझबूझ का प्रयोग कर के अपने साथ घटना स्थल पर ले गए थे जबकि वह सिपाही घटना स्थल पर जाने से मना कर रहा था!

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