क्या EVM की हैकिंग और चुनाव आयोग ने NDA और नितीश कुमार को बिहार विधान सभा चुनाव में जितवाया है? (HAVE EVM HACKING AND ELECTION COMMISSION HELPED NDA WIN BIHAR VIDHAN SABHA 2025 ELECTIONS?) - SPECIAL EDITORIAL REPORT

क्या EVM की हैकिंग और चुनाव आयोग की NDA सरकार से मिलीभगत “मैच फिक्सिंग” ने NDA और नितीश कुमार को बिहार विधान सभा चुनाव में जितवाया है?

14 नवम्बर 2025 को 202 सीटों पर NDA की महागठबंधन की 35 सीटों के मुकाबले हुई बंपर जीत पर इन बिंदुओं के आधार पर बिहार विधान सभा चुनाव नतीजों का सटीक निष्पक्ष विश्लेषण:

१. पैटर्न

. जीत के कारण

. चुनावी प्रक्रियाओं में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी

. गम्भीर बुनियादी सवाल

. निष्कर्ष

A.14 नवम्बर को हुई NDA की बंपर जीत के संबंध में, 12 नवंबर को चुनाव आयोग द्वारा जारी ज़िलेवार मतदान आँकड़े देखना जरूरी है जो बिहार 2025 के चुनाव परिणाम में एक स्पष्ट पैटर्न दर्शाते हैं:

1. पुरुषों (62.8%) के मुकाबले महिलाओं का ज्यादा मतदान प्रतिशत (71.6%) नीतीश कुमार की अगुवाई वाली सरकार के लिए फायदेमंद साबित हुआ।

2. महिला मतदाताओं तक जेडी (यू) की कल्याणकारी पहुंच ने निर्णायक बढ़त दिलाई है क्योंकि जिन जिन जिलों में महिलाओं का मतदान में दबदबा है, वहां पार्टी का वोट शेयर बढ़कर 23.8% हो गया, जबकि लैंगिक समानता वाले जिलों में यह केवल 15.7% रहा।

3. जिन ज़िलों में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से ज़्यादा थी, वहाँ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का वोट शेयर महागठबंधन से काफ़ी ज़्यादा रहा।

4. जिन ज़िलों में पुरुष और महिला मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर थी या पुरुषों की संख्या महिलाओं से ज़्यादा थी, वहाँ दोनों गठबंधनों के बीच वोट शेयर का अंतर काफ़ी कम हो गया।

5. उदाहरण के लिए, आठ ज़िलों (जिसमें 53 सीटें हैं) में 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों में महिला मतदाताओं की हिस्सेदारी 53%-55% थी, जबकि तेरह ज़िलों (जिसमें 69 सीटें हैं) में महिला मतदाताओं की हिस्सेदारी 50% से कम थी।

6. NDA को अपर कास्टस्, कुर्मी, और एक्स्ट्रैमलि बैकवर्ड क्लासेस EXTREMELY BACKWARD CLASSES) – वंचितों, शोषितों के वोट मिले.

7. महागठबंधन अपने मुस्लिम और यादव वोट बैंक को बचाने में लगभग लगभग कामयाब रहा. उसे 35 सीटें मिलीं।


B. मुख्य कारण जिनकी वजह से NDA को बंपर जीत मिली:

1. नीतीश कुमार के लगभग दो दशक के कार्यकाल में लक्षित कल्याणकारी उपायों के जरिए महिला सशक्तिकरण पर लगातार जोर दिया गया है। 

2. सितंबर में मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना की शुरुआत हुई और बिहार भर की करीब 75 लाख महिलाओं को 10,000 रुपये प्रत्येक महिला के हिसाब से राशि हस्तांतरित की गई। 

3. आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद भी राशि का वितरण जारी रहा और निर्वाचन आयोग ने इस संदिग्ध तर्क को स्वीकार कर लिया कि यह एक “पहले से चली आ रही योजना” है।

4. काम की तलाश में पुरुषों के उच्च प्रवासन की दर आंशिक रूप से इस तथ्य की व्याख्या करती है कि महिलाओं का पंजीकृत आधार छोटा होने के बावजूद उनका कुल मतदान प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा क्यों रहा। 

5. अंतिम क्षणों में नगद हस्तांतरण और ये संरचनात्मक जनसांख्यिकीय कारक किसी भी गहन राजनीतिक या वैचारिक लामबंदी के मुकाबले मतदान के पैटर्न के लिए ज्यादा जिम्मेदार मालूम होते हैं। 

6. ओवैसी की पार्टी और प्रशांत कुमार पांडेय की जनसुराज पार्टी ने महागठबंधन के वोटों में सेंध लगाई। 

7. साल 2002 के गोधरा कांड और गुजरात-दंगों के बाद पैदा हुए लोगों (18-23 आयु वर्ग) की स्मृतियों में उस कांड को लेकर कोई मनोवैज्ञानिक बोझ नहीं है। इन्हें उस कांड से कुछ लेना देना भी नहीं है। उनका फोकस आज पर है। नरेंद्र मोदीजी, भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने साल 2014 से पहले क्या किया, उस पर फोकस नहीं है। वे देख रहे हैं कि नरेंद्र मोदीजी, भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आज अच्छी अच्छी बातें कर रहे हैं जो कि उस छवि से अलग है जो छवि नरेंद्र मोदीजी, भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की राहुल गाँधी और महागठबंधन के की नेत्री नेता इनके सामने पेश कर रहे हैं! जाहिर सी बात है यह YOUNG GENERATION भाजपा के आज के प्रोपेगंडा से positively प्रभावित है। इन्हें भाजपा, NDA में अच्छाइयाँ ही नज़र आ रही हैं.

8. YOUNG GENERATION के एक बहुत बड़े हिस्से को साधने में राहुल गाँधी और महागठबंधन के की नेत्री नेता विफल रहे हैं! 

9. राहुल गाँधी और महागठबंधन के की नेत्री नेता जनता से आई अच्छी सलाहों पर अमल ही नहीं करते हैं। और ना ही इनके चमचे जनता से आई अच्छी सलाहों को इन तक पहुंचने ही देते हैं। 

10. EVM की हैकिंग और चुनाव आयोग की NDA सरकार से मिलीभगत को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता. मगर, ऐसा कोई सबूत अभी तक सामने नहीं आया है जहाँ बड़े पैमाने पर EVM की हैकिंग हुई हो या चुनाव आयोग ने NDA सरकार से मिलीभगत कर NDA को जितवाया हो। 


C. चुनावी प्रक्रियाओं में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी का जश्न मनाना स्वभाविक ही है: 

1. इस तरह के रुझान ज्यादातर उन राज्यों तक ही सीमित रहे हैं जहां या तो राजनीतिक-वैचारिक प्रतिस्पर्धा ज्यादा है – पश्चिम बंगाल और केरल – या फिर जहां विकास दर ऊंची है।

2. हालांकि, बिहार की तस्वीर कुछ और ही है। 


D. मगर कुछ गम्भीर बुनियादी सवाल भी खड़े हो गए हैं जिन पर निर्वाचन आयोग की चुप्पी साफ़ नज़र आती है: 

1. बिहार की मतदाता सूची में लैंगिक अनुपात राज्य की आबादी के सर्वेक्षणों के मुकाबले काफी कम कैसे हो गया? 

2. भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) के मतदान के प्रारंभिक आंकड़ों के मुताबिक, महिला मतदाताओं की तादाद पुरुषों से कम से कम 4.34 लाख ज्यादा रही, जो कि हैरान करने वाली है क्योंकि विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के बाद मतदाता सूची में महिलाओं के नाम पुरुषों के मुकाबले तकरीबन 42 लाख कम दर्ज किए गए थे। 

3. यह लैंगिक अंतर, जहां कम पंजीकरण वाले मतदाताओं का मतदान प्रतिशत ज्यादा रहा, कल्याणकारी राजनीति, जनसांख्यिकीय हकीकतों और मतदाता सूची की विश्वसनीयता से जुड़े लंबित सवालों के जटिल अंतर्संबंधों को रेखांकित करता है।

4. यह विरोधाभास तब और स्पष्ट हो जाता है, जब इसे चुनाव से पहले की गई एसआईआर प्रक्रिया की पृष्ठभूमि में देखा जाए। इस प्रक्रिया के नतीजे में खालिस तौर पर पुरुषों को बख्स दिया गया तथा महिलाओं को असमान रूप से मतदाता सूची से हटा दिया गया। इन विलोपनों के बाद, बिहार के मतदाताओं का लैंगिक अनुपात अंतिम एसआईआर मतदाता सूची में घटकर मात्र 892 रह गया, जबकि एक साल पहले यह 907 दर्ज किया गया था। 

5. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद जारी किए गए मसौदा एसआईआर और मतदाता सूची से बहिष्करण के आंकड़ों का ‘सांख्यिकीय विश्लेषण से पता चलता है कि महिलाएं (18-29 साल) सबसे ज्यादा प्रभावित हुईं, खासतौर पर “स्थायी रूप से दूसरी जगह चले गये” वाली श्रेणी के अंतर्गत नाम निकाल देने की वजह से। 

6. इससे पता चलता है कि शादी के बाद स्थानांतरित होने वाली महिलाओं को मतदाता सूची से हटाए जाने का खामियाजा भुगतना पड़ा और इस बात को लेकर कोई पारदर्शिता नहीं है कि उन्हें उनके नए स्थान पर मतदाता सूची में शामिल किया गया या नहीं।


E. निष्कर्ष:

1. जब तक निर्वाचन आयोग एसआईआर SIR प्रक्रिया के बारे में पारदर्शी जवाब नहीं दे देता, तब तक महिलाओं के ज्यादा मतदान प्रतिशत का जश्न मनाना मुनासिब ही रहेगा। 

2. चुनावी भागीदारी तभी सार्थक होती है, जब निष्पक्ष और सटीक मतदाता पंजीकरण हो। 

3. राहुल गाँधी और महागठबंधन की अन्य नेत्रियों – नेताओं को गहन आत्म- मंथन करना होगा अगर वे NDA को आगामी चुनावों में हराना चाहते हैं तो। 


- नेशनल डेस्क, आत्मीयता पत्रिका

 - सुश्री सुजाता कुमारी, सर्वोपरि संपादिका एवम् प्रभारी सम्पादकीय इकाई (आत्मीयता पत्रिका) 

Ms. Sujata Kumari, (Editor-in-Chief, Aatmeeyataa Patrekaa)


X - @sujatakumarika

(स्रोत: इंटरनेट, सोशल मीडिया, व्हाट्सएप्प, एक्स पर मुफ़्त में उपलब्ध छायाचित्र, और अन्य सामग्री) 

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