जोहड़ों, तालाबों के किनारे बने गरीब ग्रामीणों के घरों को ना तोड़े हरियाणा की श्री नायब सिंह सैनी सरकार...ना तोड़े हरियाणा की श्री नायब सिंह सैनी सरकार..!!
दिल्ली के चौहान राजपूत राजाओं ने वर्तमान हरियाणा में लोगों को बसाया था। उस समय गाँव की सारी जमीनों, जोहड़ों, तालाबों, कुँओं पर गाँव के लोगों का ही हक हुआ करता था। जिस ग्रामवासी को जो जगह ठीक लगती थी, वहीं वह अपना मकान बना लेता था। किसी ने ऊंची जगह पर तो किसी ने जोहड़ों, तालाबों के किनारे अपने घर बना लिये।
बाद में अंग्रेजी राज में अंग्रेजी सरकार ने इन जमीनों, जोहड़ों, तालाबों, कुँओं पर अपना अधिकार मान लिया। इनके नक्शे बना कर इन्हें जबरदस्ती गाँव के निवासियों से छीन कर सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया।
आजाद भारत की राज्य सरकारों ने भी अंग्रेजी राज की वही पुरानी शोषण की परंपरा जारी रखी।
और आज उसी अंग्रेजी राज की पुरानी शोषण की परंपरा की लीक पर जाने-अनजाने में चलते हुए हरियाणा की वर्तमान सरकार भी गाँव के निवासियों की जोहड़ों, तालाबों की इन जमीनों पर अपना अधिकार बता कर उनके किनारे 10-15 पीढ़ियों से बने और बसे घरों को तोड़ कर नया कीर्तिमान स्थापित कर रही है।
सवाल उठना लाजमी है: अगर ये जमीनें सरकार की थी तो क्यों अक्षम प्रदेश सरकार पिछले 78 सालों से सो रही थी? क्या ये सच नहीं है कि हरियाणा की वर्तमान सरकार भी अंग्रेजी राज की पुरानी शोषण की परंपरा की लीक पर चलते हुए सरकारी संपत्ति पर अतिक्रमण के नाम पर गरीब लोगों के आशियानों को उजाड़ रही है?
एक तरफ सरकार बेघरों को शामलात की गाँव की जमीन पर बसाने की बात कर रही है, वहीँ दूसरी ओर बसे बसाये घरों को तोड़ फोड़ रही है, जिन्हें उन्होंने गाढ़े खून पसीने की कमाई से बनाया है?
कानून की डिग्री वाले मुख्यमन्त्री सैनी को एक बार अपने गिरेबान में भी झांक कर देखना चाहिए क्योंकि सैनी ने कई महीने पूर्व स्वयं वक्तव्य दिया था कि वह अंग्रेजी राज की उपरोक्त नीति को गलत मानते हैं, उन्होंने स्वयं वक्तव्य दिया था कि वह मानते हैं कि अंग्रेजी राज में अंग्रेजी सरकार ने जबरदस्ती गाँव के निवासियों से छीन कर इन जोहड़ों, तालाबों की जमीनों को सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया था!
क्या उन्हें कानून की इतनी छोटी सी भी जानकारी नहीं है कि तीन साल बीत जाने के बाद सरकार किसी भी बकाया चीज को उपभोक्ता से नहीं मांग सकती है? जैसे किसी ने तीन साल तक बिजली का बिल नहीं भरा तो तीन साल की अवधी बीत जाने के बाद सरकार उस से बिजली के बिल की बकाया राशि वसूल नहीं कर सकती। जोहड़ों, तालाबों के किनारे बने और बसे घरों को भी 78 साल बीत जाने के बाद इसी उल्लेखित कानून के हिसाब से आज हरियाणा सरकार भी नहीं तोड़ सकती है!
मामला पंजाब और हरियाणा के चंडीगढ़ हाई कोर्ट में पहुंचा तो सैनी सरकार की किरकिरी हो जायेगी!
हरियाणा में तालाबों के किनारे बसे घरों को मुख्य रूप से पीएलपीए ( प्राकृतिक भूमि और जल संरक्षण अधिनियम ) के उल्लंघनों को हटाने और वेटलैंड्स ( आर्द्र भूमि ) को पुनर्जीवित करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के कारण तोड़ कर शहरी बाढ़ को कभी भी नहीं रोका जा सकता है। इस से तो केवल गरीब ग्राम वासियों के जीवन में ही बरबादी की बाढ़ आ जायेगी। जनहित में सरकारों को ऐसे फैसलों से बचना चाहिए।
तो उपाय क्या है? सरल उपाय यही है कि इन जोहड़ों, तालाबों के किनारे बने घरों का पंजीकरण कर दिया जाए जिस से हरियाणा की सरकार को बददुआओं की बजाय ग्रामवासियों का भरपूर प्यार और आशीर्वाद मिले। और साथ ही ये भी सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में जोहड़ों, तालाबों पर अतिक्रमण ना हो।
प्रस्तुति: टीम आत्मीयता
X - @teamaatmeeyataa
(स्रोत: जनहितैषी वकील, सर्वाधिक प्रचारित लोकप्रिय भारतीय जनसाहित्य और इंटरनेट, सोशल मीडिया, ग्रामीण, व्हाट्सएप्प, और एक्स पर मुफ़्त में उपलब्ध छायाचित्र, चलचित्रिका और सामग्री)
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