जन कल्याणकारी योजनाओं के लिए सुपात्र कौन है? (HOW TO FIND DESERVING NEEDY PEOPLE WHO SHOULD BENEFIT FROM PUBLIC WELFARE SCHEMES IN INDIA?)

आजकल भारत में विभिन्न राज्यों में सरकारी जन कल्याणकारी योजनाओं की बाढ़ सी आई हुई है। अधिकतर सामान्य देशवासियों तथा इन योजनाओं को लागू करने वाले कर्मचारियों का सोचना ये है कि ये योजनाएँ अधिकतर निर्धन किसानों, दीहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों या ग्रामीणों के लिए ही हैं। वास्तव में ऐसा सोच गलत है जिसके कारण ही बहुत सारे जरूरतमंदों को इन योजनाओं का लाभ नहीं दिया जाता।

इन जन कल्याणकारी योजनाओं पर समाज के हर वर्ग का समान हक है।

प्रश्न उठना स्वभाविक है कि इसके लिए कौन सा मापदंड सबसे उचित है? इसके लिए सबसे उचित पैमाना सालाना इंकम है।

परंतु, सालाना इंकम कैसे निकाली जाए?

किसी की भी इंकम जानने का ये तरीका निम्नवत उदाहरणों से सरलता से समझा जा सकता है।

मान लो एक किसान, एक व्यापारी, एक निवेशक की इंकम जाननी है। 

मान लो किसान के पास एक खेत है जिसे वो आज बेच दे तो उसे 40 लाख रुपये मिल जायेंगे। इसका मतलब ये नहीं है कि किसान की इंकम 40 लाख रुपये है। खेत एक तरह से बैंक में जमा किये फिक्स्ड डिपॉजिट की तरह ही होता है। अब मान लो किसान को खेत से साल में 60 हजार की कीमत की फसल पैदा होती है जिसमें से खाद वगैरह का खर्च घटाने पर उसकी शुद्ध फाइनल इंकम केवल 35 हजार रुपये रह जाती है। अब सरकारी योजना है जिसका लाभ केवल उन्ही को मिलेगा जिनकी सालाना इंकम 40 हजार रुपये से नीचे है। किसान को इस योजना का लाभ मिलेगा क्योंकि उसकी फाइनल इंकम 35 हजार रुपये है जो की 40 हजार की सीमा से नीचे है, क्योंकि उसके फिक्स्ड डिपॉजिट यानी खेत की 40 लाख कीमत को उसकी सालाना इंकम नहीं माना जाता है।

आप कहेंगे कि “अरे वाह! किसान कहाँ से जरूरतमंद हुआ? किसान खेत बेच दे तो 40 लाख रुपये मिल जायेंगे। वो 40 लाख रुपये में आराम से बाकी की बची जिंदगी गुजार सकता है, उसकी गरीबी दूर हो जायेगी!”

लेकिन, आपका तर्क गलत है। किसान का खेत उसकी पूंजी है। वह अपनी पूंजी को नहीं गवां सकता। यदि वह खेत बेच कर मिलने वाली 40 लाख की रकम पर गुजारा करेगा तो एक दिन अंत में उसके 40 लाख खत्म हो जायेंगे और वो तथा उसका परिवार फ़िर से भीख मांगते नजर आएंगे।

मान लो व्यापारी के पास एक दुकान है जिसमें रखे माल को वो आज बेच दे तो उसे 10 लाख रुपये मिल जायेंगे। इसका मतलब ये नहीं है कि व्यापारी की इंकम 10 लाख रुपये है। दुकान में रखा माल एक तरह से बैंक में जमा किये फिक्स्ड डिपॉजिट की तरह ही होता है। व्यापारी को दुकान से साल में कुछ माल बेचने पर 50 हजार की रकम मिलती है जिसमें से दुकान के किराये भाड़े आदि का खर्च और नुक्सान घटाने पर उसकी शुद्ध फाइनल इंकम केवल 30 हजार रुपये रह जाती है। अब सरकारी योजना है जिसका लाभ केवल उन्ही को मिलेगा जिनकी सालाना इंकम 40 हजार रुपये से नीचे है। व्यापारी को इस योजना का लाभ मिलेगा क्योंकि उसकी फाइनल इंकम 30 हजार रुपये है जो की 40 हजार की सीमा से नीचे है, क्योंकि दुकान में रखे माल की 10 लाख कीमत को उसकी सालाना इंकम नहीं माना जाता है।

आप कहेंगे कि “अरे वाह! व्यापारी कहाँ से जरूरतमंद हुआ? वह दुकान को माल सहित बेच दे तो 10 लाख रुपये मिल जायेंगे। वो 10 लाख रुपये में आराम से बाकी की बची जिंदगी गुजार सकता है, उसकी गरीबी दूर हो जायेगी!”

लेकिन, आपका तर्क गलत है। व्यापारी की दुकान और उसमें रखा माल उसकी पूंजी है। वह अपनी पूंजी को नहीं गवां सकता। यदि वह दुकान और उसमें रखा माल बेच कर मिलने वाली 10 लाख की रकम पर गुजारा करेगा तो एक दिन अंत में उसके 10 लाख खत्म हो जायेंगे और वो तथा उसका परिवार फ़िर से भीख मांगते नजर आएंगे।

मान लो निवेशक के पास 7 लाख के विभिन्न कंपनियों के शेयर हैं। इन शेयरों को वो आज बेच दे तो उसे 7 लाख रुपये मिल जायेंगे। इसका मतलब ये नहीं है कि निवेशक की इंकम 7 लाख रुपये है। मार्केट में उसके 7 लाख रुपये के शेयर एक तरह से बैंक में जमा किये फिक्स्ड डिपॉजिट की तरह ही होता है। अब निवेशक साल में कुछ शेयर बेच देता है और उसे 70 हजार की रकम मिलती है जिसमें से घाटे में बेचे गये शेयरों का नुक्सान घटाने पर उसकी शुद्ध फाइनल इंकम केवल 25 हजार रुपये रह जाती है। अब सरकारी योजना है जिसका लाभ केवल उन्ही को मिलेगा जिनकी सालाना इंकम 40 हजार रुपये से नीचे है। निवेशक को इस योजना का लाभ मिलेगा क्योंकि उसकी फाइनल इंकम 25 हजार रुपये है जो की 40 हजार की सीमा से नीचे है, क्योंकि मार्केट में विभिन्न कंपनियों के निवेशित शेयरों की 7 लाख कीमत को उसकी सालाना इंकम नहीं माना जाता है।

आप कहेंगे कि “अरे वाह! निवेशक भला कहाँ से जरूरतमंद हुआ? वह अपने सारे शेयरों को आज बेच दे तो उसे 7 लाख रुपये मिल जायेंगे। वो 7 लाख रुपये में आराम से बाकी की बची जिंदगी गुजार सकता है, उसकी गरीबी दूर हो जायेगी!”

लेकिन, आपका तर्क गलत है। शेयर उसकी पूंजी है। वह अपनी पूंजी को नहीं गवां सकता। यदि वह शेयर बेच कर मिलने वाली 7 लाख की रकम पर गुजारा करेगा तो एक दिन अंत में उसके 7 लाख खत्म हो जायेंगे और वो तथा उसका परिवार फ़िर से भीख मांगते नजर आएंगे।

इसलिए उपर्युक्त उदाहरण में दर्शित किसान, व्यापारी, और निवेशक सरकारी जन कल्याण सहायता पाने के लिए सर्वथा योग्य पात्र हैं। 

आशा है सभी सरकारों के अधिकारियों को अब समझ में आ जायेगा कि जन कल्याणकारी योजनाओं के लिए समाज के सभी वर्गों के योग्य सदस्यों की पात्रता कैसे आँकी जाए।

- स्वामी मूर्खानंद जी

(स्रोत: सर्वाधिक प्रचारित लोकप्रिय भारतीय जनसाहित्य और इंटरनेट पर मुफ़्त में उपलब्ध छाया चित्र/चल चित्रिका)


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