कांटो की झाड़ियों में गुलाब (सतसंग - प्रेरक वचन)

कोई छोटा-मोटा दुख भी आ भी जाता है तो हम रोते हैं, प्रार्थनाएं करते हैं,मन्नतें माँगते हैं कि हे ईश्वर, मुझे इस दुख से उबारो तो मैं प्रसाद चढ़ाऊंगी, नारियल चढ़ाऊंगी, कन्याओं को भोजन कराऊंगी, कन्याओं को मीठा खिलाऊंगी, गरीबों को दान करूंगी! वगैरह - वगैरह...

बस...?

इतना सा ही भरोसा है अपने सतगुरू पर...?

अरी बहना! 

हमें क्या पता कि कितनी बड़ी पहाड़ जैसी मुसीबत आने वाली थी हम पर जिसको सतगुरु ने एक छोटे से राई के दाने जितनी मुसीबत में तब्दील कर दिया; हाथी जितनी मुसीबत को चींटी जितनी बना दिया!

भरोसा बहुत बड़ी ताकत होती है और फिर हमें अपना कर्मों का लेखा-जोखा भी तो खतम करना है ना...!

विश्वास और भरोसे को बिल्कुल भी डगमगाने नहीं देना है। सतगुरु को सब खबर है कि हमारे साथ क्या और क्यूँ हो रहा है। फिर हम ये सोचने वाले होते ही कौन हैं कि ऐसा मेरे साथ ही क्यों हो रहा है ? जबकि हमारे साथ खुद दो जहान के मालिक इन्सान के रूप में खड़े हैं। 

कई बार नजदीकी रिश्तों में भी इस गलतफ़हमी पैदा हो जाती हैं और हम उनकी शक्ल तक देखना नहीं चाहते। ये भी मालिक की मर्जी होती है हमें समझाने के लिए कि रिश्ते हमेशा गलतफ़हमी के मोहताज नहीं होते।

जरूरत है अटूट विश्वास और भरोसे की, अटूट आस्था की, और सतगुरु के हुक्म में रहते हुए भजन सिमरन की, फिर देखिये हमारी समझ को कैसे समझ आ जायेगी और सभी गलतफहमियां एक दिन खत्म हो जाएगी...!

"हम शिकायत करते हैं कि 

गुलाब की झाड़ियों में कांटे हैं..."

या 

"खुश हो सकते हैं कि 

कांटो की झाड़ियों में गुलाब है ...!"

हमारी खुशी हमारी सोच पर निर्भर करती है...! इसलिए मालिक के हुकम में रहें, भजन सुमिरन करते हुए मालिक शुकराना करते रहें...!

... और एक दिन सतगुरु हमारी नैया को भवसागर से पार लगा देंगे!


प्रस्तुतिकर्ति

सुजाता कुमारी, 

सर्वोपरि संपादिका, 

आत्मीयता पत्रिका

(स्रोत: सर्वाधिक प्रचारित लोकप्रिय भारतीय जनसाहित्य और इंटरनेट, सोशल मीडिया, व्हाट्सएप्प, एक्स पर मुफ़्त में उपलब्ध छायाचित्र और सामग्री

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