एक बार एक अमीर आदमी अपने दफ्तर जा रहा था। रास्ते में उसकी कार ख़राब हो गई। लेकिन, उसका दफ्तर पहुँचना बहुत जरुरी था.
तभी उसे एक पेड़ के नीचे एक रिक्शा दिखाई दिया। जब वो रिक्शा वाले के पास गया तो वो मज़े से लेट कर गाना गुन-गुना रहा था।
वो अमीर आदमी रिक्शा वाले को ऐसे बैठे हुए देख कर बहुत हैरान हुआ कि कोई इतना खुश कैसे रह सकता है!
उसने पूछा,"चलोगे?"
रिक्शे वाले ने कहा, "हाँ जी!"
"कितने पैसे लोगे?"
"जी बीस रूपये!"
अमीर आदमी रिक्शे में बैठ गया। रिक्शेवाला चल पड़ा।
रिक्शे वाला गाना गुनगुनाते हुए बड़े मज़े से रिक्शा चला रहा था।
अमीर आदमी बहुत हैरान था कि एक आदमी सिर्फ 20 रूपए कमाकर इतना खुश कैसे हो सकता है! इतने मज़े से कैसे गुन-गुना सकता है!
वो रिक्शे वाले की खुशी का राज़ समझने के लिए उसको अपने बँगले में रात को खाने के लिए बुलाता है।
रिक्शे वाला खुशी से हाँ कर देता है।
वो अपने नौकरों को इस रिक्शे वाले को सबसे अच्छे खाने परोसने के लिये कहता है जैसे पूरी, परांठा, सब्ज़ियाँ, मीठे में हलवा, आइसक्रीम, गुलाब जामुन वगैराह।
रिक्शे वाले ने गुनगुनाते हुए मजे से खाना शुरू कर दिया। अमीर आदमी को लगा है जैसे यह रिक्शे वाला ऐसा बढ़िया खाना पहली बार नहीं खा रहा, बल्कि पहले भी कई बार खा चुका है!
अपनी जिज्ञासा शाँत करने के लिये वो रिक्शे वाले को अपने बँगले में कुछ दिन रुकने के लिए पूछता है तो रिक्शे वाला 'हाँ' कर देता है।
उसको बँगले में बहुत इज्जत से रखा गया, नये जूते, नये कपड़े, सब सुख सुविधायें, कमरे में टेलीविज़न, एयरकंडीशन...
लेकिन, वो रिक्शे वाला इतने सुखों को देखकर भी वैसे ही मस्त है। जैसे वो रिक्शा चलाकर था, वो वैसे ही गुन-गुना रहा था। जैसे वो पहली बार मिलने पर गुनगुना रहा था।
अमीर आदमी बड़ी हैरानी से पूछता है, "आप खुश हैं? आराम से हैं?"
रिक्शे वाले ने दोनों हाथ जोड़कर कहा, "जी! मैं बहुत खुश हूँ, परमात्मा का शुक्र है! "
अमीर आदमी ने सोचा कि अब इसको वापस भेज दिया जाये। तभी इसे शायद इन बेहतरीन चीजों के सुखों का एहसास होगा।
अमीर आदमी ने कहा, "ठीक है! कल सुबह आपको आपके घर भेज दिया जाएगा।"
"ठीक है सेठ जी, जैसा आप चाहें जब आप चाहें, मैं अपने घर लौट जाऊँगा। "
सुबह को रिक्शे वाले ने वापिस आकर रिक्शे की अपनी सीट उठाई और उसमें से एक काला थैला निकाला। बैग में से काला और मैला सा कपड़ा निकाला। अपने रिक्शा को साफ़ किया, मज़े में गुन-गुनाने लगा।
अमीर आदमी ने उससे पूछा, “भाई! तुम्हें ग़रीबी के दुखों से या अमीरी के सुखों में कोई फर्क नहीं पड़ा। तुम तो अब भी गुनगुना रहे हो!"
रिक्शे वाले ने कहा, "सेठ जी! इन्सान को हर हाल में खुश रहना चाहिये और प्रभु का शुक्र करना चाहिये।"
"लेकिन, तुम सारा दिन क्या गुनगुनाते रहते हो?"
"जी! मैं सारा दिन परमात्मा की महिमा गाता रहता हूँ कि उसने मुझे सब कुछ दिया है।
मैं हर समय परमात्मा के नाम का सिमरन करता हूँ! क्या पता कौन सी साँस आखिरी हो!"
सन्त कबीर साहिब जी के वचन हैं-
"कल करै सो आज कर,
आज करे सो अब।
पल में प्रलय (मौत) होयेगी,
फ़िर करेगा कब?"
अमीर आदमी,हक्का बक्का खड़ा था कि मुझे तो मालिक की बन्दग़ी याद ही नहीं है!
आप किस श्रेणी में हैं, ये आप से अच्छा कौन जानता है जी..!
प्रस्तुतिकरण:
संपादकीय मंडली
आत्मीयता पत्रिका
(स्रोत: सर्वाधिक प्रचारित लोकप्रिय भारतीय जनसाहित्य और इंटरनेट पर मुफ़्त में उपलब्ध छाया चित्र)
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