एक व्यक्ति के घर परमात्मा और गुरु दोनों पहुंच गए। वो बाहर आया और उनके चरणों में गिरने लगा। वो पहले परमात्मा के चरणों में गिरा तो परमात्मा बोले- रुको-रुको! पहले गुरु के चरणों में जाओ।
वो व्यक्ति दौड़ कर गुरु के चरणों में गया। गुरु बोले- मैं परमात्मा को लाया हूं, पहले परमात्मा के चरणों में जाओ।
वो व्यक्ति परमात्मा के चरणों में गया तो परमात्मा बोले- इस परमात्मा को गुरु ही लाया है न, गुरु ने ही बताया है न, तो पहले गुरु के चरणों में जाओ।
फिर वो गुरु के चरणों में गया।
गुरु बोले- नहीं-नहीं! मैंने तो तुम्हें बताया ही है न, लेकिन तुमको बनाया किसने? परमात्मा ने ही तो बनाया है न, इसलिए पहले परमात्मा के चरणों में जाओ।
फिर वो व्यक्ति परमात्मा के चरणों में गया।
परमात्मा बोले- रुको! मैंने तुम्हें बनाया, यह सब ठीक है, और तुम मेरे चरणों में आ गए हो। लेकिन मेरे यहां न्याय की पद्धति है। अगर तुमने अच्छा किया है, अच्छे कर्म किये हैं, तो तुमको स्वर्ग मिलेगा। फिर अच्छा जन्म मिलेगा या अच्छी योनि मिलेगी। लेकिन अगर तुम बुरे कर्म करके आए हो, तो मेरे यहां दंड का प्रावधान भी है, और दंड मिलेगा। चौरासी लाख योनियों में भटकाए जाओगे, फिर अटकोगे, फिर तुम्हारी आत्मा को कष्ट होगा। फिर नरक मिलेगा, और फिर अटक जाओगे।
लेकिन यह गुरु है ना, यह बहुत भोला है। इसके पास, इसके चरणों में पहले चले गए, तो तुम जैसे भी हो और जिस तरह से भी हो, ये तुम्हें गले लगा लेगा और तुमको शुद्ध करके मेरे चरणों में रख जाएगा, जहां ईनाम ही ईनाम है।
तात्पर्य
यही कारण है कि जो भी गुरु से मिलता है, गुरु कभी भी उसे अपने से दूर नहीं भगाता है, बल्कि उसे निखारता है, उसको गले लगाता है, उस पतित को पावन करता है और फिर सदा के लिए जन्म-मरण के आवागमन से मुक्ति दिलाकर परमात्मा के चरणों में भेज देता है।
(स्रोत: सर्वाधिक प्रचारित लोकप्रिय भारतीय जनसाहित्य)
Comments