क्यों हरियाणा के राजपूत समाज के साथ भारतीय निर्वाचन आयोग और भाजपा सरकार ने अन्याय किया ?
ऑल इंडिया इंसानियत पार्टी ने, एक अगस्त २०१५ में, भारतीय निर्वाचन आयोग को पत्र लिख कर हरियाणा के बवानी खेड़ा आरक्षित क्षेत्र से राजपूत बहुल गाँवों को बाहर निकाल कर अनारक्षित जनरल क्षेत्र में सम्मिलित करने की ज़ोरदार मॉंग की थी ताकि राजपूत समाज को राजनैतिक न्याय मिल सके और ताकि राजपूत समाज भी जनसंख्या पर आधारित प्रजातंत्र के गणित में अपने समुदाय के हितों की रक्षा हेतु हरियाणा विधान सभा और लोकसभा में अपना राजपूत प्रतिनिधि भेज सके. साथ ही हरियाणा में राजपूत बहुल और जाट बहुल गाँवों की संख्या की भी जानकारी माँगी थी.
प्रत्युत्तर में भारतीय निर्वाचन आयोग ने हरियाणा के बवानी खेड़ा आरक्षित क्षेत्र से राजपूत बहुल गाँवों को बाहर निकल कर अनारक्षित जनरल क्षेत्र में सम्मिलित करने में अपनी असमर्थता यह कहते हुए जताई कि :
(१ ) तत्कालीन DELIMITATION ACT, 2002 के अंतर्गत तत्कालीन DELIMITATION COMMISSION ने चुनाव क्षेत्र के रूप में पीसी , केसी , तहसील और वार्ड को ही मूल इकाई को ही लिया , न कि गाँव को ! (सबसे मज़े की बात यह है कि उस समय वर्ष २००२ में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी !)
(२) २००१ की जनगणना के आधार पर भिवानी जिले के ५९ - बवानी खेड़ा की कुल जनसंख्या का २५.५७% हरियाणा में शेडूल्ड जातियों की सर्वाधिक जनसंख्या होने के कारण शेडूल्ड जातियों के लिए ५९ - बवानी खेड़ा को आरक्षित कर दिया गया !
(३) वर्तमान चुनावी क्षत्रों में फेर बदल तभी होगा जब कभी भविष्य में STATUTORY DELIMITATION EXERCISE होगी! (अर्थात ५९- बवानी खेड़ा चुनावी क्षेत्र से राजपूत बहुल गाँवों को फिलहाल अभी बाहर नहीं निकाला जाएगा !)
सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि प्रत्युत्तर में भारतीय निर्वाचन आयोग ने यह कहा कि भारतीय निर्वाचन आयोग को हरियाणा में राजपूत बहुल और जाट बहुल गाँवों की संख्या की भी जानकारी नहीं है ! अर्थात भिवानी जिले के ५९ - बवानी खेड़ा की कुल जनसंख्या का सर्वाधिक भाग होने के बावज़ूद भी राजपूत समाज अपना राजपूत प्रतनिधि नहीं चुन सकते हैं !
कटु राजनैतिक सत्य यह है कि कुछ राजनैतिक षडयंत्रकारियों ने बड़े सफल और सुनियोजित ढंग से निम्न षड्यंत्र रच कर हरियाणा के राजपूतों को राजनैतिक रूप से निर्बल बना दिया:
(१) राजपूत बहुल गाँवों को कभी भी एक संगठित इकाई के रूप में राजनैतिक चुनाव क्षेत्र नहीं बनने दिया !
(२) राजपूत बहुल गाँवों को चुन चुन कर अलग अलग चुनावी क्षेत्रों में सम्मिलित कर दिया !
(३) यदि जहाँ कहीं भी राजपूत बहुल गाँव एक संगठित इकाई के रूप में राजनैतिक चुनाव क्षेत्र के रूप में उभरे तो उन राजपूत बहुल राजनैतिक चुनावी क्षेत्रों को शेडूल्ड जातियों के लिए आरक्षित कर दिया गया !
यह कहाँ का न्याय है कि कुछ जातियों पर सदियों पहले हुए 'तथाकथित अन्याय' को दूर करने हेतु वर्तमान में किसी अन्य जाति के साथ महाअन्याय किया जाए ?
ऑल इंडिया इंसानियत पार्टी पुनः एक बार फिर ज़ोरदार माँग करती है कि 'सबका साथ, सबका विकास' की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार तुरंत हरियाणा के बवानी खेड़ा आरक्षित क्षेत्र से राजपूत बहुल गाँवों को बाहर निकल कर अनारक्षित जनरल क्षेत्र में सम्मिलित करवाए ताकि हरियाणा के राजपूत समाज को भी राजनैतिक न्याय मिल सके !
ऑल इंडिया इंसानियत पार्टी ने, एक अगस्त २०१५ में, भारतीय निर्वाचन आयोग को पत्र लिख कर हरियाणा के बवानी खेड़ा आरक्षित क्षेत्र से राजपूत बहुल गाँवों को बाहर निकाल कर अनारक्षित जनरल क्षेत्र में सम्मिलित करने की ज़ोरदार मॉंग की थी ताकि राजपूत समाज को राजनैतिक न्याय मिल सके और ताकि राजपूत समाज भी जनसंख्या पर आधारित प्रजातंत्र के गणित में अपने समुदाय के हितों की रक्षा हेतु हरियाणा विधान सभा और लोकसभा में अपना राजपूत प्रतिनिधि भेज सके. साथ ही हरियाणा में राजपूत बहुल और जाट बहुल गाँवों की संख्या की भी जानकारी माँगी थी.
प्रत्युत्तर में भारतीय निर्वाचन आयोग ने हरियाणा के बवानी खेड़ा आरक्षित क्षेत्र से राजपूत बहुल गाँवों को बाहर निकल कर अनारक्षित जनरल क्षेत्र में सम्मिलित करने में अपनी असमर्थता यह कहते हुए जताई कि :
(१ ) तत्कालीन DELIMITATION ACT, 2002 के अंतर्गत तत्कालीन DELIMITATION COMMISSION ने चुनाव क्षेत्र के रूप में पीसी , केसी , तहसील और वार्ड को ही मूल इकाई को ही लिया , न कि गाँव को ! (सबसे मज़े की बात यह है कि उस समय वर्ष २००२ में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी !)
(२) २००१ की जनगणना के आधार पर भिवानी जिले के ५९ - बवानी खेड़ा की कुल जनसंख्या का २५.५७% हरियाणा में शेडूल्ड जातियों की सर्वाधिक जनसंख्या होने के कारण शेडूल्ड जातियों के लिए ५९ - बवानी खेड़ा को आरक्षित कर दिया गया !
(३) वर्तमान चुनावी क्षत्रों में फेर बदल तभी होगा जब कभी भविष्य में STATUTORY DELIMITATION EXERCISE होगी! (अर्थात ५९- बवानी खेड़ा चुनावी क्षेत्र से राजपूत बहुल गाँवों को फिलहाल अभी बाहर नहीं निकाला जाएगा !)
सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि प्रत्युत्तर में भारतीय निर्वाचन आयोग ने यह कहा कि भारतीय निर्वाचन आयोग को हरियाणा में राजपूत बहुल और जाट बहुल गाँवों की संख्या की भी जानकारी नहीं है ! अर्थात भिवानी जिले के ५९ - बवानी खेड़ा की कुल जनसंख्या का सर्वाधिक भाग होने के बावज़ूद भी राजपूत समाज अपना राजपूत प्रतनिधि नहीं चुन सकते हैं !
कटु राजनैतिक सत्य यह है कि कुछ राजनैतिक षडयंत्रकारियों ने बड़े सफल और सुनियोजित ढंग से निम्न षड्यंत्र रच कर हरियाणा के राजपूतों को राजनैतिक रूप से निर्बल बना दिया:
(१) राजपूत बहुल गाँवों को कभी भी एक संगठित इकाई के रूप में राजनैतिक चुनाव क्षेत्र नहीं बनने दिया !
(२) राजपूत बहुल गाँवों को चुन चुन कर अलग अलग चुनावी क्षेत्रों में सम्मिलित कर दिया !
(३) यदि जहाँ कहीं भी राजपूत बहुल गाँव एक संगठित इकाई के रूप में राजनैतिक चुनाव क्षेत्र के रूप में उभरे तो उन राजपूत बहुल राजनैतिक चुनावी क्षेत्रों को शेडूल्ड जातियों के लिए आरक्षित कर दिया गया !
यह कहाँ का न्याय है कि कुछ जातियों पर सदियों पहले हुए 'तथाकथित अन्याय' को दूर करने हेतु वर्तमान में किसी अन्य जाति के साथ महाअन्याय किया जाए ?
ऑल इंडिया इंसानियत पार्टी पुनः एक बार फिर ज़ोरदार माँग करती है कि 'सबका साथ, सबका विकास' की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार तुरंत हरियाणा के बवानी खेड़ा आरक्षित क्षेत्र से राजपूत बहुल गाँवों को बाहर निकल कर अनारक्षित जनरल क्षेत्र में सम्मिलित करवाए ताकि हरियाणा के राजपूत समाज को भी राजनैतिक न्याय मिल सके !
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