प्रारब्ध कर्म और ईश्वर

एक वृद्धा औरत हमेशा परमात्मा के नाम का जाप किया करती थी। धीरे-धीरे वो काफी बुजुर्ग हो चली थी, इसलिए एक कमरे में ही पड़ी रहती थी। जब भी उसे शौच या स्नान आदि के लिए जाना होता था, वो अपनी बहू को आवाज लगाती और बहू ले जाती थी। 

धीरे-धीरे कुछ दिनों बाद बहू कई-कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी-कभी ही आती और देर रात तो आती भी नहीं थी। इस दौरान वो कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करती थी। अब और ज्यादा बुढ़ापा होने के कारण उसे दिखाई भी बहुत कम देने लगा था।

एक दिन, रात को निवृत्त होने के लिए जैसे ही उसने अपनी बहू को आवाज लगाई, तुरंत एक लड़की आती है और बड़े ही कोमल स्पर्श के साथ उसको निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा जाती है। अब तो ये रोज का नियम हो गया था।

एक रात उस वृद्धा औरत को शक हो जाता है कि पहले तो बहू को रात में कई-कई बार आवाज लगाने पर भी वह नहीं आती थी, लेकिन ये लड़की तो आवाज लगाते ही दूसरे क्षण आ जाती है और फिर बड़े ही कोमल स्पर्श से सब निवृत्त करवा देती है।

एक रात वो औरत उस लड़की का हाथ पकड़ लेती है और पूछती है- सच बता, तू कौन है? मेरी बहू तो ऐसे नहीं हैं।

तभी अंधेरे कमरे में एक अलौकिक उजाला हुआ और उस लड़की रूपी ईश्वर ने अपना वास्तविक रूप दिखाया।

वो औरत रोते हुए कहती है- हे प्रभु, आप स्वयं मेरे निवृत्ती के कार्य कर रहे हैं। यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो, तो मुक्ति ही दे दो ना।

ईश्वर कहते हैं- जो आप भुगत रहे हैं, वो आपके प्रारब्ध हैं। आप मेरी सच्ची साधक हैं और अपने सत्गुरु द्वारा बताए गए मार्ग पर चल कर हर समय मेरा नाम जप करती हैं, इसलिए मैं आपके प्रारब्ध भी आपकी सच्ची साधना के कारण स्वयं कटवा रहा हूं।

औरत कहती है- क्या मेरे प्रारब्ध आपकी कृपा से भी बड़े हैं? क्या आपकी कृपा, मेरे प्रारब्ध नहीं काट सकती है?

ईश्वर कहते हैं- मेरी कृपा सर्वोपरि है। ये अवश्य आपके प्रारब्ध काट सकती है। लेकिन फिर अगले जन्म में आपको ये प्रारब्ध भुगतने के लिए फिर से आना होगा। यही कर्म नियम है। इसलिए आपके प्रारब्ध मैं स्वयं अपने हाथों से कटवाकर इस जनम-मरण से आपको मुक्ति देना चाहता हूं।

ईश्वर आगे कहते हैं- प्रारब्ध तीन तरह के होते हैं, मंद, तीव्र तथा तीव्रतम। मंद प्रारब्ध मेरा नाम जपने से कट जाते हैं, तीव्र प्रारब्ध किसी सच्चे सत्गुरु का संग करके श्रद्धा और विश्वास से मेरा नाम जपने पर कट जाते हैं, पर तीव्रतम प्रारब्ध भुगतने ही पड़ते हैं। लेकिन जो हर समय श्रद्धा और विश्वास से मुझे जपते हैं, उनके प्रारब्ध मैं स्वयं साथ रहकर कटवाता हूं और तीव्रता का अहसास नहीं होने देता हूं।


तात्पर्य

परमात्मा से मिलाने वाला सिर्फ और सिर्फ एक पूर्ण सत्गुरु ही होता है और बड़े ही भाग्यशाली होते हैं वो लोग, जिन्हें पूर्ण सत्गुरु मिल जाते हैं।

हमें हर समय अपने सत्गुरु के द्वारा बताए हुए मार्ग पर चलना चाहिए, नियमित भजन-सिमरन करना चाहिए और हर एक पल उनका शुक्रिया अदा करते रहना चाहिए।

(स्रोत: भारतीय जनश्रुतियाँ) 

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