कंजूस सेठ की पूर्ण निष्ठा - कहानी

एक कंजूस सेठ था। वह अपना जीवन बहुत ही कंजुसी से जिया करता था। 

जितनी आवश्यकता होती है उससे भी कम वो खर्चा किया करता था। 

एक दिन उसके मन में आया कि पूजा पाठ करना चाहिए। पर उसको फिर विचार आया कि यदि वो पूजा पाठ करेगा तो उसके लिए भी खर्चा करना होगा। 

फिर उसने सोचा क्यों न पूजा पाठ मानसिक रूप से कर लिया जाय जिसमें कोई खर्चा नही आएगा। 

उसने नित्य सुबह बाल कृष्ण को मानसिक रूप से स्नान करवाता उनको आसान पर विराजमान करता। 

उनकी आरती उतारता और उनके लिए दूध गर्म करता और उसमें शक्कर मिला कर उनको भोग लगाता। 

उसका ये नित्य का नियम था, इसमें वो किसी प्रकार की लापरवाही नही करता था।

वो सुबह उठ जाता और ये नित्य बाल कृष्णजी की मानसिक रूप से पूजा करता। 

उसको बहुत ही बढ़िया लग रहा था क्योंकि उसको किसी भी प्रकार का कोई खर्चा नही लग रहा था और पूजा भी हो रही थी। 

इस प्रकार उसको पूजा करते हुए काफी वर्ष बीत गए। कोई भी अपना दृढ़तापूर्वक अपने नियम का पालन करते है तो वो नियम सिद्ध हो जाता हैं। 

एक दिन सेठजी को सुबह उठने में देरी हो गयी, अब वो जल्दबाजी में उठा और वो चिंतित हो उठा कि अभी तक भगवान को भोग नही लगाया। 

उसने जल्दी से स्नान आदि से निवर्त हुआ और बालकृष्ण जी को मानसिक रूप से स्नान करवाया। 

फिर उनको आसान दिया और मन ही मन उनको धूपबत्ती दिया आदि किया। 

फिर मन ही मन रसोई में गया और दूध गर्म किया जल्दी से गिलास में रखा और उसमें शक्कर डाला। 

वो सेठ जी रोज एक चम्मच शक्कर डालते थे लेकिन उस दिन जल्दबाजी के कारण 1 चम्मच की जगह 2 चम्मच शकर डाल दी।

अब सेठजी चिंतित होने लगे कि एक चम्मच की जगह दो चम्मच डाल दी, एक चम्मच का नुकसान हो गया, जबकि ये सब वो मन ही मन कर रहा था। 

मानसिक पूजा में भी उसको एक चम्मच ज्यादा लग रहा था। अब वो मन ही मन उस एक चम्मच शकर को दूध से निकाल रहा था, और बालकृष्ण जी ये सब देख रहे थे थे। 

अब बालकृष्ण जी से रहा नही गया और वो प्रकट हो गए, और उन्होंने सेठजी का हाथ पकड़ लिया और कहा," अरे भई तेरा जैसे भक्त मैने देखा नही जो मन ही मन भोग लगा रहा हैं और उसमें भी इतनी कंजुसी कर रहा है। डाल दे 2 चम्मच शकर इसमें तेरा क्या जाता हैं" लेकिन मै तेरी भक्ति और पूर्ण  विश्वास के कारण तुझ से प्रसन्न हूँ, तुझे अपनी पूर्णा भक्ति देता हूँ।"

इस प्रकार उस सेठजी का जीवन धन्य हो गया और सेठ जी को भगवान की प्राप्ति हो गयी। क्योंकि सेठ जी को पूर्ण निष्ठा थी की भगवान ये दूध पीते हैं।

प्रसतुतिकर्ती: सुजाता कुमारी

(स्रोत: भारतीय लोक साहित्य) 



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