मुस्लिम धर्म में सूफी तबके का शाह-रग मार्ग और सनातन संस्कृति का योग मार्ग एक जैसा ही है. ईसा मसीह भी योग के शब्द्- भेदी अनाहत नाद मार्ग का अनुसरण करते थे जो कि नाथ पंथी भी करते हैं.
पश्चिम में बहुत से संत हुए हैं जिन्होंने योग को अपने अपने ढंग और उस समय के तत्कालीन परिवेश के हिसाब से अपनाया था. अतएव, यह कहना कि योग किसी धर्म विशेष की ही देन है, अनुचित जान पड़ता है. योग तो सृष्टि के आरंभ से ही समूचे विश्व में अपनाया गया है.
मूलभूत सोच तो सभी धर्मो की यही है कि मानव जाति का समग्र कल्याण हो, लोगों को मोक्ष मिले. परंतु, सभी धर्मों के ठेकेदारों ने अपने अपने अनुयायीयों को भटका कर के दूसरे धर्मो केअनुयायीयों से लड़वा दिया है.
वह परम शक्ति तो एक ही है. सभी धर्म उसी परम शक्ति की इच्छा से ही पैदा हुए हैं.
वह शक्ति चाहती तो पूरे विश्व में एक धर्म विशेष को ही जीवित रहने देती. परंतु, वह ऐसा नहीं चाहती. यही सत्य है.
सभी धर्म उसी परम शक्ति की परम लीला हैं. हम सामान्य प्राणी उस परम शक्ति की इस विचित्र लीला को ग़लत कहने के कदापि भी अधिकारी नहीं हैं.
- डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी
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