"यह दुनिया बड़ी अजीब है। आप कुछ भी अच्छा काम करने निकलेंगे तो उसमें भी कुछ न कुछ बुराई, कुछ न कुछ कमी निकाल ही देगी।
लगभग हर किसी को अपनी पड़ी है। आपाधापी मची है।
शायद ही कोई बिना मतलब के आपकी मदद करने को आगे आए। ज्यादातर लोग किसी की मदद करने से पहले इस बात का हिसाब लगाते हैं कि इस काम को करने से बदले में अपना खुद का कितना फायदा होने वाला है। फायदा होता नजर नहीं आए तो वे मदद ही नहीं देंगे चाहे मदद मांगने वाला मर ही क्यों न रहा हो।
ऐसे ही जब आप खुद ही अपनी खुद की मदद करने के लिए अपने सामान को, अपनी दुकान के माल को बेचने के लिए अपने माल की अच्छाई का ढिंढोरा पीटना शुरु करते हैं तो कुछ लोग अनजाने में और कुछ लोग आपसे चिड कर या आपको नीचा दिखाने के लिए शोर मचाना शुरू कर देते हैं - "देखो रे देखो, यह अपना गुणगान खुद ही कर रहा है। यह अपनी बड़ाई खुद ही कर रहा है। यह शख्स अच्छा नहीं। यह दुनिया के मालिक की भक्ति करने लायक नहीं...!"
दोस्तों, दुनिया का यही दस्तूर है। इसलिए नजरअंदाज कर दीजिए कि दुनिया वाले आपके बारे में क्या कहते हैं। अगर वे आपकी बुराई कर रहे हैं तो समझ लीजिए कि वे अपने खुद के दिल में दफन बुराई को ही आपके बहाने खोद कर खुद के जहन को ही जहरीला बना रहे हैं।
आप अपना काम करते रहिए। हक हलाल से रोजी रोटी कमाते रहिए, अपने तजुर्बे और इल्म को ओरों की भलाई के वास्ते शेयर करते रहिए। चाहे इस नेकी के काम के लिए आपको खुद ही अपने ढोल क्यों न पीटने पड़ें, खुद ही क्यों न अपने अच्छे काम के बारे में लोगों को बताना पड़े।
अरे, भई! जब लोगों को आपके उत्पाद, माल या ज्ञान के बारे में पता ही नहीं चलेगा तो समाज कैसे आपके उत्पाद, माल या ज्ञान से फायदा उठाएगा?
हां! एक बात का ख्याल जरूर रखिएगा। अपने उत्पाद, माल या ज्ञान का ढोल पीटते वक्त अपने दिमाग में घमंड को घुसने न दीजिए। केवल यही सोचिए कि आप केवल एक जरिया हैं, एक ऐसा जरिया जिसके जरिए इस दुनिया का मालिक खुद ही कुछ काम कर रहा है। जब मालिक खुद ही आपसे काम करवा रहा है इंसानियत की भलाई के लिए तो उसमें घमंड करने की कोई गुंजाइश ही नहीं, भौंकने वाले कुत्तों से डर कर अपने काम को रोकने की भी जरूरत नहीं।
जितना हो सके समाज की, इंसानियत की सेवा कीजिए - अपने नेक कामों से, अपने नेक ज्ञान से।"
(स्रोत: डाॅ स्वामी अप्रतिमानंदा जी)
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