हरियाणा सरकार को कुछ सृजनात्मक सुझाव


ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है सरकारी योजनाओं को गाँव में ही रह कर लागू करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों की. प्रायः यह देखा गया है कि अधिकतर शहरी पृष्ठभूमि के सरकारी नौकर गाँव में काम करना पसंद नहीं करते. जिन्हें जबरदस्ती गाँव में भेजा भी जाता है, वे भी पूरे मन से काम नहीं करते हैं. 

ऐसी स्थिति में सरकार गाँव में ही रह रही गाँव की सुशिक्षित युवा पीढ़ी को ही सरकारी योजनाओं को गाँव में लागू करने की जिम्मेदारी दे सकती है.

सरकार को इसके कई लाभ हैं. गाँव की सुशिक्षित युवा पीढ़ी गाँव की समस्याओं से भली भाँति परिचित होती है. उनमें अपने गाँव का विकास करने की प्रबल इच्छा शक्ति होती है. उनसे विभिन्न सरकारी कार्य प्रभावशाली ढंग से कराए जा सकते हैं.

शहर से गाँव भेजे गए कर्मचारियों और अधिकारियों को आवास भत्ता, प्रवास भत्ता आदि देना पड़ता है जबकि गाँव में ही रह रहे कर्मचारियों और अधिकारियों को आवास भत्ता, प्रवास भत्ता नहीं देना पड़ता है. इससे सरकारी खजाने का बोझ कम हो जाता है.

इस दिशा में हरियाणा की सरकार ने कुछ सराहनीय कदम उठाएं हैं. सक्षम योजना के अंतर्गत गाँव की सुशिक्षित युवा पीढ़ी को गाँव में ही रह कर कई विभिन्न सरकारी योजनाओं को गाँव में लागू करने की जिम्मेदारी दी गई है.

परंतु, हरियाणा की सरकार के सराहनीय कदम अपर्याप्त सिद्ध हुए हैं जिन्हें और अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है. 

उदाहरण के लिए, सक्षम योजना के अंतर्गत विभिन्न सरकारी योजनाओं को लागू कर रही गाँव की सुशिक्षित युवा पीढ़ी को दस-पन्द्रह वर्षों की लंबी अवधि तक सरकारी सेवा में रखना चाहिए जिससे कि उनका सुफलदायक अनुभव व्यर्थ न जाए. 

मैट (MATE) के दस दिन के अनुबंधीय पद पर कार्यरत मनरेगा योजना को लागू कर रहे गाँव के सुशिक्षित युवा को हर महीने मात्र दस दिन  के लिए काम पर रखने की अपेक्षा उसे सरकारी सेवा में नियमित करके प्रतिमाह निर्धारित वेतन देना चाहिए जो आज के संदर्भ में हरियाणा में प्रतिमाह पन्द्रह हजार रुपये होना चाहिए. साथ ही पेंशन जैसी अन्य सुविधाएं भी देनी चाहिए.

नौकरी की सुरक्षा पा कर गाँव का सुशिक्षित युवा पूरे तन मन से गाँव की सेवा में जुट जायेगा. साथ ही, उसकी सरकारी योजना की धनराशि में भृष्टाचार करने की इच्छा भी कम हो जायेगी. और तो और, नौकरी की सुरक्षा पा कर गाँव का सुशिक्षित युवा सरकारी योजना को नियंत्रित कर रहे सरकारी अधिकारियों के नाजायज दबाव में नहीं आयेगा. 

वर्तमान में हो यह रहा है कि सरकारी योजना को नियंत्रित कर रहे सरकारी अधिकारी इन दस दिन के अनुबंध पर काम कर रहे युवाओं पर दबाव बना कर सरकारी योजना की धनराशि का 30℅ तक निर्लज्जता से गबन कर जाते हैं. 

जैसे ही नई पंचायत चुन कर आती है वैसे ही नया सरपंच मनरेगा और अन्य योजनाओं में कार्यरत पुराने मैट (MATE) आदि को हटा कर अपनी पसन्द का नया मैट (MATE) आदि ले आता है जिससे मनरेगा योजना और अन्य योजनाओं में कार्यरत पुराने मैट (MATE) आदि का तब तक का अर्जित अनुभव सरकार के लिए बेकार चला जाता है.

यद्यपि हरियाणा सरकार के मुख्यमन्त्री मनोहर लाल खट्टर पूरी तरह से ईमानदार माने जाते हैं जिन्होंने शासन प्रशासन को पूर्ण पारदर्शी और ईमानदार बनाने का भरसक प्रयास किया है तथापि शासन प्रशासन  में अभी भी 20-25℅ पुराने भृष्ट चावल हैं जिन्होंने पूरी खीर को ही कड़वा बना दिया है. ये पुराने चावल अब नये चावल के दानों को भी भृष्ट बनाने में जुटे हुए हैं.

शासन प्रशासन के निचले स्तर पर भयंकर भृष्टाचार व्याप्त है. उदाहरण के लिए,  अधिकतर पटवारी, तहसीलदार बिना रिश्वत लिए जमीनों, खेतों का नया पंजीकरण, हस्तांतरण आदि करते ही नहीं हैं. जो रिश्वत नहीं देता है उसे ये धूर्त पटवारी, तहसीलदार अपने कार्यालय के इतने ज्यादा चक्कर कटवा देते हैं कि बंदा तंग आ कर मुँहमाँगी रिश्वत दे ही देता है.

होना यह चाहिए कि जमीनों, खेतों के रेकॉर्ड/कागजात गाँव में ही कंप्यूटर पर उपलब्ध होने चाहिए. यह आज के कंप्यूटर युग में पूरी तरह सम्भव है. गाँव के लंबरदार को कंप्यूटर आदि सुविधाएं उपलब्ध करवा दी जाएं. उसे अधिकार दिया जाए की वह जमीनों, खेतों के गिरदावरी आदि से सम्बंधित सभी जिम्मेदारी निभाए. इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि पटवारी, तहसीलदार आदि के द्वारा किये जा रहे शोषण से आम ग्रामीण जनता बच जायेगी.

सरकारी महकमे को निर्देश दिए जाएं कि वे जनता के काम में अडंगा डालने की बजाए जनता को आसान से आसान रास्ता बताएँ जनता के काम में आ रही बाधाओं को दूर करने के लिए. 

आम जनता की शिकायत है कि सरकारी महकमा उनके कागजातों को क्लीयर नहीं करता है और न ही बताता है उन कागजात में में उपस्थित तथाकथित कमियां.

जनता की उपरोक्त शिकायत को अविलम्ब दूर किया जाए. साथ ही सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की सालाना गोपनीय रपट में - उनके द्वारा जनता की कितनी परेशानियाँ दूर की गई बिना रिश्वत लिए और कितनी जल्दी – इस बात पर बल दिया जाए. उन्हीं की सालाना गोपनीय रपट अच्छी लिखी जाये और उन्हें ही प्रमोशन दिया जाए जिन्होंने बिना रिश्वत लिए और बहुत जल्दी से जनता के काम किये हों.

- डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा


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