एक समय की बात है, किसी महात्मा जी के पास एक लड़का आया और उनसे बोला- महात्मा जी! मुझे भी परमात्मा से मिला दो, मैं भी उसे देखना चाहता हूं।
महात्मा जी लड़के को बोले- बेटा! यह तेरे बस की बात नहीं है। तुझे अभी सिर्फ चाव है, प्रेम नहीं।
लड़का बोला- मैं कुछ नहीं जानता महात्मा जी। आप मुझे भी दिखाओ परमात्मा। मैं भी तो देखूं कि कैसा है वो, क्या करता है और कहां रहता है?
महात्मा जी फिर बोले- बेटा! ये कोई खेल नहीं है और इस रास्ते में खुद अपने आप को गंवाना पड़ता है, अपना मन मारना पड़ता है और अच्छा बनना पड़ता है। इसके साथ ही हमें अच्छाई और सच्चाई के रास्ते पर चलना पड़ता है और इस रास्ते पर चल कर हमें त्याग भी देना पड़ता है।
लड़का बोला- कोई बात नहीं महात्मा जी, मैं तैयार हूं।
महात्मा जी बोले- अच्छा! चलो देखते हैं। इस रास्ते पर चल कर तुम्हें खुद को भी त्यागना पड़ेगा, और मेरी इस बात को याद रखना।
लड़का बोला- जी ठीक है महात्मा जी।
अब महात्मा जी उस लड़के को एक सरोवर में ले गए, और बोले- चलो स्नान कर लो।
और वो उस सरोवर में उतर गया।
महात्मा जी ने उसकी गर्दन पकडी़ और पानी में डुबो दी। अब वो छटपटाने लगा, और जब उसे बाहर निकाला तो वो बोला- मुझे सांस नहीं आ रही है।
महात्मा जी बोले- घबराओ मत बेटा! ऐसे ही मिलेगा परमात्मा।
और उसे फिर पानी में डुबो दिया।
दोबारा बाहर निकाला तो लड़का बोला- बस करो महात्मा जी! मुझे तो पानी में सांस ही नहीं आ रही है।
महात्मा जी बोले- बेटा! अब बता, सांस चाहिए या परमात्मा।
वो लड़का उखड़ी हुई सांस लेते हुए बोला- महात्मा जी! सांस चाहिए।
महात्मा जी बोले- जब तुम्हारे लिए सांस से ज्यादा परमात्मा प्यारा हो, तो मेरे पास आ जाना।
तात्पर्य
यही हाल हमारा सबका भी है, हम परमात्मा को पाना तो चाहते हैं पर कुछ भी त्याग नहीं करना चाहते। हमारी कुर्बानी और त्याग के बिना, हमें कभी भी परमात्मा मिल ही नहीं सकता है। हमें अगर कुछ त्याग करना है, तो वो अपनी इच्छाओं का, अपने लालच का और अपने काम, क्रोध, लोभ और मोह का करना है। हमें अपने अंदर बसे अहंकार का त्याग करना है, तभी हम अपने मन रूपी बर्तन को साफ-सुथरा रख सकते हैं। हमें अपने अंदर की गंदगी को निकाल देना है, फिर देखना, हमारा रूहानी रास्ता कितना आसान हो जाता है। इन सबके लिए जरूरी है, हमारा अपने आप को उस मालिक (परमात्मा) के हवाले कर देना। और यह काम तभी हो सकता है, जब हमें उस कुल मालिक पर पूरा भरोसा और उसके प्रति लगन हो, कि जो कुछ भी वो हमारे लिए करेगा, अच्छा ही करेगा। हमारे अंदर एक दृढ़ विश्वास होना चाहिए, तब जाकर हम कमाई करने वाले बन पाएंगे। जब तक हम पूर्ण रूप से अपने आपको उस परमात्मा के आगे सुपुर्द नहीं करते, तब तक हम रूहानी कमाई करने के हकदार नहीं बन सकते। जब हम अपने आपको उस कुल मालिक के हवाले करके और उसको याद करते हुए भजन-सिमरन और नाम की कमाई में लगेंगे, तभी हम उस कुल मालिक के साथ मिलाप हासिल कर पाएंगे। लेकिन इन सबके लिए जरूरी है, कि हमारे अंदर त्याग और समर्पण की भावना हो। जब हम उस परमात्मा के लिए सब कुछ त्याग करके, उस एक नाम का सिमरन और भजन करेंगे और जब हम उस कुल मालिक को याद करेंगे, तो वो भी हमें अपनी रहमतों से माला माल कर देगा।
(स्रोत: भारतीय जनश्रुतियाँ)
Comments