एक आदमी प्यासा है, तो उसकी पानी की खोज, एक और बात है, और एक आदमी प्यासा नहीं है, उसकी पानी की खोज बिल्कुल दूसरी बात है। प्यास तो खोज ही लेगी पानी को, और जितनी तीव्र प्यास होगी, उतनी तीव्रता से खोज लेगी।
एक पहाड़ी रास्ते पर एक यात्री जा रहा था, उसने एक बूढ़े आदमी को बैठा हुआ देखा और उससे पूछा- गांव कितनी दूर है, और मैं कितने समय में पहुंच जाऊंगा?
वो बूढ़ा आदमी ऐसे बैठा रहा, जैसे उसने कुछ सुना ही ना हो, और या वो बहरा हो। वो यात्री बड़ा हैरान हुआ, कि उस बूढ़े ने कुछ भी जवाब नहीं दिया।
यात्री आगे बढ़ गया और कोई बीस कदम ही गया होगा कि वो वह बूढ़ा आदमी चिल्लाया- सुनो! एक घंटा लगेगा।
उस यात्री ने कहा- बड़े अजीब हो। मैंने जब पूछा था, तब तुम चुप रहे।
तब उस बूढ़े आदमी ने कहा- मैं पहले पता तो लगा लूं कि तुम चलते कितनी रफ्तार से हो। तो जब बीस कदम मैंने देख लिए कि कैसे चलते हो, तो फिर मैं समझ गया कि एक घंटा तुम्हें पहुंचने में लग जाएगा। तो मैं क्या उत्तर देता पहले, जब मुझे पता ही नहीं कि तुम किस रफ्तार से चलते हो, और तुम्हारी रफ्तार पर निर्भर है गांव पहुंंचना, कि कितनी देर में पहुंंचोगे, इसलिए मैं चुप रह गया।
इसी तरह हमारी रफ्तार पर निर्भर है, कि हम कैसी तीव्रता से, कितनी गंभीरता से और कितनी ईमानदारी से जीवन को बदलने की आकांक्षा से अभिप्रेरित हुए हैं। परमात्मा प्राप्ति हमारे जीते जी का लक्ष्य है और यह हमारे पर निर्भर करता है कि हम समय कितना लगाते हैं। हो सकता है, जब एक बार अंदर चेतनता में प्रवेश कर गए, फिर भीतर कोई समय नहीं है। सब समय बाहर है। तो अगर बाहर यात्रा करनी हो, तब तो समय निश्चित लगता है, लेकिन भीतर यात्रा करनी हो, प्यास अगर परिपूर्ण हो, तो समय लगता ही नहीं है, बिना समय के एक ही पल में, लेकिन वो निर्भर करेगा हमारे ऊपर, कि हम इस पल से ही फायदा उठाते हैं, या इस जन्म से ही और या फिर अगले जन्म से।
संत-महात्मा फरमाते हैं- अगला जन्म किसने देखा? मनुष्य जन्म मिले या ना मिले, ऐसा माहौल (पूर्ण सत्गुरु, और उनसे नाम/दीक्षा प्राप्ति) मिले या ना मिले, इस बात की क्या गारंटी है? जो भी भजन-सिमरन करना है, आज और अभी ही करना है।
(स्रोत: भारतीय जनश्रुतियां)
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