किस एक काव्य पँक्ति ने हिन्दुस्तान की २१वीं शताब्दी की राजनीती को जातिगत दलदल से बाहर निकाल कर समता प्रदान की ?
जी हाँ , स्वामी अप्रतिमानंदा जी की वर्ष २००३ में पुणे से प्रकाशित हिंदी के प्रसिद्ध साप्ताहिक 'सीधी बात'
में प्रकाशित अप्रतिम अमर कविता 'भगवान में दोष' की अमर पँक्ति 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' ने हिन्दुस्तान की २१वीं शताब्दी की राजनीती को जातिगत दलदल से बाहर निकाल कर समता के ठोस स्वर्णिम धरातल पर ला खड़ा किया!
दुर्भाग्य से कांशीराम व मायावती की 'बहुजन समाजवादी पार्टी' [बसपा] की 'बहुजन' समाजवादी राजनीती ने हिंदुस्तान को दलितों और गैर दलितों में बाँट कर हिंदुस्तान को राजनैतिक दलदल में धकेल दिया था और हिंदुस्तान को तोड़ने का काम आरंभ कर दिया था!
इन बसपा के नेताओं और नेत्रिओं ने 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' से प्रेरणा ग्रहण की और इस तथ्य को हृदय से स्वीकार किया कि 'बहुजन' की राजनीती अति संकीर्ण है और समाज के गैर दलितों को राजनीती से बाहर रखने का घृणित कार्य कर रही है। सो , उन्होंने दलितों और गैर दलितों अर्थात सभी हिन्दुस्तानियों को जोड़ने वाली 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' की सुखद विचारधारा को अपना लिया और इसे बसपा और उत्तर प्रदेश सरकार के उद्घोष वाक्य के रूप में अंगीकृत कर लिया !
यह बात दूसरी है कि बसपा या मायावती ने भी दूसरे बहुत सारे धूर्त अति स्वार्थी राजनैतिक दलों और नेताओं - नेत्रियों की भाँति ही स्वामी अप्रतिमानंदा जी को 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' की सुखद संकल्पना के सृजन हेतु कोई श्रेय व सम्मान नहीं दिया !
- स्वामी मूर्खानन्द जी
[फ़ोटो: 'सीधी बात' व 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के सौजन्य से]
[टिप्पणी: इस लेख में व्यक्त विचार स्तंभकार स्वामी मूर्खानन्द जी के अपने स्वयं के व्यक्तिगत विचार हैं। इन विचारों से ऑल इंडिया इंसानियत पार्टी का सहमत होना कोई अनिवार्य नहीं है। इस संबंध में न्यायिक विवादों के निपटारे हेतु दिल्ली उच्च न्यायालय ही एक मात्र विकल्प है।]
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