'सबका साथ, सबका विकास' व् 'सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' में क्या कोई भेद/अंतर है ?

'सबका साथ, सबका विकास' व् 'सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' में क्या कोई भेद/अंतर है ?
'सर्व' शब्द का अर्थ है - 'सब , सभी'।  'जन' शब्द का अर्थ है - 'लोग'। 'हिताय' शब्द का अर्थ है - 'भले के लिए' , 'लाभ के लिए'। 'सुखाय' शब्द का अर्थ है - 'सुख के लिये' , 'पनपने के लिये' , 'लहलहाने के लिए' , 'ख़ुशहाल होने के लिये', 'विकास के लिये' ।
      
(१) 'सर्वजन हिताय' का अर्थ हुआ - 'सब के भले के लिये', 'सब के लाभ के लिये'। 'सब का भला' का अर्थ ही 'सब का साथ' है।

आप 'सब का साथ' तभी ले सकते हैं या सब को साथ ले कर तभी चल सकते हैं जब आप 'सब का भला' करते हैं या करने की इच्छा रखते हैं!
अर्थात , 'सर्वजन हिताय' का अर्थ हुआ - 'सब का साथ'!

(२) 'सर्वजन सुखाय ' का अर्थ हुआ - 'सब का पनपना', सबका विकास होना'!
'सब का पनपना' का अर्थ ही 'सब का विकास' है।'सब का विकास ' तभी हो सकता है जब आप 'सब को पनपने' में सहायता करते हैं या करने की इच्छा रखते हैं!
अर्थात , 'सर्वजन सुखाय' का अर्थ हुआ - 'सब का विकास'!

संक्षेप में , हम कह सकते हैं कि  'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय 'का अर्थ ही 'सबका साथ सबका विकास ' है…! 

हम दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि भारतीय प्रधान सेवक एवं मंत्री नरेंद्र मोदी और मंडली ने स्वामी अप्रतिमानंदा जी की अमर हिंदी कविता 'भगवान में दोष क्यों तुम ढूंढते हो?' की अमर पंक्ति 'सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' को ही तोड़ मरोड़ कर एवम 'रिपेकेजिंग' कर 'सबका साथ सबका विकास ' नारा बना दिया है…!





 [फोटो : गूगल के सौजन्य से ]
 

 

Comments

Jugalmilan said…
बहुत ही अच्छे विचार वाले अर्थ हैं।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद! यह भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि बहुजन समाजवादी पार्टी की सुश्री मायावती ने अपने मुख्यमंत्री-काल में डाॅ स्वामी अप्रतिमानंदा जी की कविता की अमर पंक्ति "सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय" को बसपा का उदघोष वाक्य/नारा तो बना लिया, परंतु डाॅ स्वामी अप्रतिमानंदा जी का कभी भी राजकीय सम्मान नहीं किया और ना ही उन्हें किसी भी साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित किया!
इसी प्रकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उसके सलाहकारों ने भी डाॅ स्वामी अप्रतिमानंदा जी के सृजनात्मक लेखन और विचारों का भरपूर राजनीतिक लाभ उठाया है, परंतु उन्हें किसी भी यथोचित राष्ट्रीय साहित्यिक और पदम विभूषण/भारत-रत्न से सम्मानित नहीं किया! हमारे भारतवर्ष के भाजपा, बसपा जैसे बड़े राजनीतिक दलों के सुश्री मायावती और नरेंद्र मोदी जैसे दिग्गज नेत्रियों/नेताओं की कथनी और करनी में उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव का अंतर है!
आपने सही कहा"बहुत ही अच्छे विचार वाले अर्थ हैं!" सच तो यह है कि डाॅ स्वामी अप्रतिमानंदा जी के अप्रतिम साहित्य और भुगोल, राजनीति, योग, संस्कृति आदि विषयों पर लिखी पुस्तकों/रचनाओं को स्कूल, काॅलेज और यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जाना चाहिए!
पर हमारे आपके सुझावों को सुनेगा कौन?