अंतर में प्रकाश देखने का गारंटीड सच्चा तरीका - सच्ची लगन

राधा स्वामी ब्यास के परम संत हुज़ूर सावन सिंह जी ने पेशावर में मुसलमान पठानों की बस्ती में सत्सँग किया। सभी पठान एक सिक्ख समाज में पैदा हुए सन्त से अरबी, फारसी की आयतें और मारफत, हकीकत की बातें सुनकर बेहद हैरान हो गये।

वहाँ के एक पढे लिखे पठान ने हुजूर से सन्तमत की शिक्षा पर काफी लम्बी बातचीत की और कई सवाल भी पूछे।

बड़े महाराज संत हुज़ूर सावन सिंह जी ने उस मुसलमान जिज्ञासु को अरब देशों और ईरान के सूफी सन्तों की वाणियों के उदाहरण देकर समझाया।

अंत में वह पठान बोला, “हुज़ूर! आपकी सभी बातें दुरुस्त हैं! लेकिन, खुदा के दीदार का जो रास्ता आप बताते है, वो बिल्कुल सही है, इसका क्या सुबूत है?”

हुजूर ने मुस्कराते हुए उस पठान को सिमरन और भजन का तरीका बताया।

सिमरन का तरीका

हुजूर ने कहा, “नाम के जप को सिमरन कहते हैं। इसे निरति भी कहते हैं।

हर रोज सुबह सूरज निकलने से एक-डेढ़ घंटा पहले किसी आसन पर एक घंटा आल्थी-पाल्थी लगा कर बैठो। इसी तरह रात में भी किसी आसन पर एक घंटा आल्थी-पाल्थी लगा कर बैठो जब सब सो जाएँ।

इसके बाद शरीर को एक हल्की महीन चादर से ढक लो। ऐसा करने से तुम्हें मच्छर, कीट पतंगे परेशान नहीं कर पाएंगे।

बच्चा जब माँ के पेट में होता है तो उसकी माँ का जिस्म उसकी हीफाजत करता है। चादर भी एक किस्म से अभ्यासी प्रेमी सत्संगी की हीफाजत करती है। 

इसके बाद दोनों आँखें बंद कर लो। 

दोनों भौंहों के बीच जहाँ औरतें माथे पर बिंदी लगाती हैं, उसे तीसरा तिल कहते हैं, उस जगह पर तीसरे तिल पर ध्यान टिकाओ और अपने खुदा के नाम को बार बार जपो बिना होंठ हिलाये हुए। 

पहले पहले शायद केवल अंधेरा ही दिखे। बाद में धीरे धीरे नजारे दिखने लगेंगें। 

आखिर में नूर प्रकाश नजर आने लगेगा। 

इस नूर में खुदा उस रूप में दिखने लगेगा जिस रूप में आप उसे देखना चाहते हैं। 

इसे ही असली ईश्क कहते हैं।

भजन का तरीका

इसके बाद हुजूर ने फ़रमाया, “जिस्म के अंदर से आ रही बांग-ए-आसमानी को सुनना ही सच्चा भजन, असली इबादत है।

एक घंटे के सिमरन के बाद सिमरन के चौथे हिस्से के बराबर यानी पन्द्रह मिनट तक भजन करो। भजन करते वक्त भी जिस्म को चादर से ढक कर रखो।

इसके लिए आल्थी पाल्थी, चौकड़ी खोल लो। उकडू हो कर बैठ जाओ। अपनी दोनों आँखों को सहज ढंग से बंद कर लो।

दोनों हाथों की कोहनियों को दोनों घुटनों पर टिका दो। बाएँ हाथ की कोहनी बाएँ घुटने पर, दाएं हाथ की कोहनी दाएं घुटने पर।

बाएँ हाथ की छोटी उंगली को बाईं आँख पर हल्के से रख दो, दाएं हाथ की छोटी उंगली को दाईं आँख पर हल्के से रख दो।

कानों को अंगूठों से ढक लो। बाएँ हाथ के अंगूठे से बायां कान ढक लो, दाएँ हाथ के अंगूठे से दायां कान ढक लो।

दोनों हाथों की बाकी तीनों उंगलियों को कनपटियों और सिर पर टिका लो। बाएँ हाथ की तीनों उंगलियों को बाईं कनपटी पर, दाएँ हाथ की तीनों उंगलियों को दाईं कनपटी पर।

ऐसा करने से बाहर की आवाजें आना बंद हो जायेंगी।

अब तीसरे तिल पर ध्यान रखते हुए अंदर से आ रही आवाज को पन्द्रह मिनट तक सुनने की कोशिश करो। ये आवाज धुर धामसचखंड, सच्चे मालिक की दरगाह से आ रही है।

सच्चे मालिक खुदा की दरगाह से आ रही इसी मिठी आवाज को बांगे आसमानी  कहते हैं, सच्चा कलमा कहते हैं।

कभी ये आवाज बाएँ कान के अंदर से आती सुनाई देगी, कभी दाएं कान से आती सुनाई देगी, तो कभी तीसरे तिल से आती सुनाई देगी।

जो आवाज बाएँ कान के अंदर से आती सुनाई देगी, वो आवाज काल यानी शैतान की दरगाह से आती है, उस आवाज को मत पकड़ना। 

लेकिन, जो आवाज दाएं कान के अंदर से आती सुनाई देगी, वो आवाज सच्चे मुर्शिद सतगुरु यानी सच्चे खुदा की दरगाह से आती है, उस आवाज को ही पकड़ना। 

आखिर में धीरे धीरे ये आवाज तीसरे तिल से आती हुई सुनाई देगी।

आखिर में  तीसरे तिल से आती हुई इसी आवाज को पकड़ना। यही धुन या आवाज आपकी रूह को उपर खींच कर सच्चे खुदा की दरगाह में ले जायेगी।

ये आवाजें भी कई तरह की हैं। शुरू शुरू में जो भी आवाज सुनाई दे, उसे सुनना।

धीरे धीरे आपको आखिर में घंटे की आवाज सुनेगी, उसे पकड़ना, उसे ही सुनना। 

घंटे की आवाज ही आखिर में आपकी रूह को ऊपर खींच कर सच्चे खुदा की दरगाह में ले जायेगी।

रूह के इस तरह ऊपर चढ़ने को सुरति लगना कहते हैं।"

हुजूर ने आगे कहा, “आप चालीस दिन तक नियमित एक घण्टा सुबह और एक घण्टा रात में हर रोज़ खुदा के किसी भी नाम का प्रेम से सिमरन करो।चालीस दिन तक नियमित पन्द्रह मिनट सुबह और पन्द्रह मिनट रात में बांगे आसमानी, धुन, कलमा सुनो। 

इन चालीस दिनों में अपनी बीवी से जिस्मानी रिश्ते ना बनाओ, अपनी काम वासना को शांत रखो।

इतना सब कुछ करने के बाद फिर भी अगर आपको सुबूत ना मिले तो ब्यास आकर मुझे पकड लेना।”

वो पठान भी धुन का बहुत पक्का था।

उसने अभी एक महीने तक ही सिमरन का अभ्यास किया ही था कि उसे अन्दर में प्रकाश और नज़ारे दिखने लगे।

उसे अपने अन्तर में हुजूर के नूरी दर्शन भी हुए। वह अब तो हुज़ूर के प्रेम में दीवाना हो कर ब्यास पहुँच गया।

आँखों में प्रेम के आँसू लिए बड़े महाराज जी के सामने पेश हुआ और नामदान के लिए अर्ज की।

शहनशाह ने अपनी दया से उसे नाम बख्श दिया। उस भाई ने नाम के खूब हीरे मोती इकठ्ठे कर लिये।

अब तो हमें भी यह राज़ पता चल ही गया है कि सच्चे दिल से प्रेम प्यार से परमात्मा के किसी भी नाम का सिमरन और भजन कर के और संगत की सेवा से उस कुल मालिक, ख़ुदा, राम, सतगुरू को रिझाया जा सकता है। उस मालिक और परमात्मा को पाया जा सकता है!

सिमरन और भजन की करनी करो, जीते जी अध्यात्मिक रूप से मरो! 

टिप्पणी: “अध्यात्मिक रूप से मरो” का अर्थ, मतलब यह नहीं है कि सच में ही मर जाओ। इसका अर्थ, मतलब यह है कि जिंदा रहते हुए अपनी सूरत और ध्यान को समेट कर आज्ञा चक्र तक ले आना है, शरीर को कुछ देर के लिए खाली कर देना है।भजन, धुन, शब्द, अंतर की आवाज, बांगे आसमानी, कलमा को सुनने का सही सही तरीका प्रेकटिकली समझने के लिए आपको किसी सच्चे शब्द-अभ्यासी सत्संगी या महात्मा से संपर्क करना चाहिए।


प्रस्तुतिकर्ति:                     

सुश्री सुजाता कुमारी,सर्वोपरि संपादिका एवम् प्रभारी सम्पादकीय इकाई (आत्मीयता पत्रिका) 

X - @sujatakumarika

(स्रोत: सर्वाधिक प्रचारित लोकप्रिय भारतीय जनसाहित्य,  राधा स्वामी सत्संग ब्यास द्वारा प्रकाशित 'संतमत' और अन्य पुस्तकें; इंटरनेट, सोशल मीडिया, व्हाट्सएप्प, एक्स पर मुफ़्त में उपलब्ध छायाचित्र, चलचित्रिका और अन्य सामग्री)

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