लोकसभा चुनाव 2024, आर एस एस, अपने आप को ईश्वर का दूत घोषित करने वाले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा अप्रतिमानंदा जी के बेबाक विचार (FRANK CANDID THOUGHTS ON LOKSABHA ELECTIONS 2024, RSS, NARENDRA MODI BY Dr SWAMI APRTEMAANANDAA JEE

भारत देश में आज वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में सत्ता पक्ष के खिलाफ वैसा ही माहौल बन गया है जैसा 2013-2014 में कांग्रेस की केंद्रीय सरकार के खिलाफ बना था!

64 करोड़ की बोफोर्स की दलाली के आरोप लगने पर राजीव गांधी को जनता ने सत्ता से बाहर कर दिया था, हालांकि यह आरोप आज तक सिद्ध नहीं हो पाया है। ऐसे में अदानी अंबानी जैसे चुनिंदा 20-25 अरबपति उद्योगपतियों को उनके सोलह लाख करोड़ रुपयों के लोंस माफ करने के आरोप से घिरी भाजपा को आम वोटर क्यों वोट देंगे?

रावण से बढ़ कर शिव का आज तक कोई भी बड़ा भक्त नहीं हुआ है. वह शिव जी की घोर पूजा करता था, मस्तक पर भस्म ( त्रिपुंड) लगाता था, गले में रुद्राक्ष की माला धारण करता था. पर, कर्म तो उसके थे राक्षस के ही. श्रेष्ठ व्यक्ति, श्रेष्ठ भक्त अपने श्रेष्ठ सदकर्मों कर्मों से जाना जाता है, ना कि बाहरी दिखावे और आडम्बर से.

पिछले दिनों पत्रकारों को दिये साक्षात्कार में अपने आप को ईश्वर का दूत घोषित कर और सवयं में देवीय शक्ति होने का मूर्खतापूर्ण बयान दे कर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल अपने अहंकार का विभत्स प्रदर्शन किया है, अपितु करोड़ों भारतीयों की आस्था पर भी कुठाराघात किया है।

यदि नरेंद्र मोदी ईश्वर का दूत है तो क्या शेष 140 करोड़ भारतीय पिशाच हैं?

अरे भई, वह एक ब्रह्म ही सब जीवों में भास रहा है। इस तर्क से सभी 140 करोड़ भारतीय ब्रह्म स्वरूप हैं, अर्थात स्वयम ब्रह्म ही हैं। 

सभी उस परम ज्योत के अंश हैं, गण हैं। इसलिए भारत को एक गणतांत्रिक देश कहा जाता है जहाँ वोटर रूपी मामूली से गण की शक्ति ही सर्वोपरि है, ना कि किसी शासक रूपेण देवता की। 

लोकतांत्रिक सरकार रूपेण देवता के प्राण वोटर रूपी मामूली से दिखने वाले सर्व शक्तिशाली गणों के नियंत्रण में ही होते हैं। अतः इस देवता से अधिक शक्तिशाली इसके गण हैं। 

अतः अपने आप को ईश्वर का दूत घोषित कर और सवयं में देवीय शक्ति होने का मूर्खतापूर्ण बयान देना प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के छोटे सोच को ही प्रदर्शित करता है।

मुझे याद आ रहा है वो दिन जब मैंने अटल बिहारी वाजपेयी जी की उस स्पीच को टेलीविजन पर सुना था जो उन्होंने वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के बाद दी थी। यदि आपको कहीं वह टेलीविजन क्लिप मिल जाए तो अवश्य ही देखना। 

उनके दाहिनी बाजू में तब के मुख्यमंत्री और आज के प्रधान मंत्री महोदय नरेंद्र मोदी खड़े थे। 

अटल बिहारी वाजपेयी जी ने जैसे ही कहा कि नरेंद्र मोदी को "राजधर्म" निभाना चाहिए था तो नरेंद्र मोदी ने बड़ी अकड़ और दुस्साहस दिखाते हुए, सब मर्यादाओं का उल्लंघन करते हुए ये कहते हुए वाजपेयी जी को टोक दिया, "स्साहब्! हम भी तो यही कर रहे हैं." शालीन वाजपेयी जी ने नरेंद्र मोदी की उस उदंडता का कोई जवाब नहीं दिया। 

मेरे मन में उस समय यह सोच आया कि यह अक्खड़, उदंड व्यक्ति नरेंद्र मोदी एक बहुत ही खतरनाक आदमी है जो शालीन वाजपेयी जी को भी बीच में ही धृष्टता दिखाते हुए यूँ गँवारों के सदृश टोक रहा है। 

दुर्भाग्य से मेरा सोच नरेंद्र मोदी ने गत दस वर्षों के अपने  प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए सत्य सिद्ध कर दिया है। 

मुझे किसी पार्टी विशेष से कोई लगाव नहीं है। ये सुदृढ़ भारतीय लोकतंत्र है जिसमें सत्ता इसीलिए केवल 5 साल के लिए दी जाती है कि अगर कोई दल वादों पर खरा न उतरे तो उसकी जगह किसी अन्य दल को सत्ता में लाया जाए जिस से सबक ले कर हर दल केवल जनहित के ही काम हमेशा करे.

मैंने 1990 के दशक में दिल्ली के झंडेवाला में जो आर एस एस के संघ कार्यालय में स्वयं जा कर अपनी आँखों से उस नरम आर एस एस को देखा था वो नरम आर एस एस आज इंदु घाटी की सभ्यता की भाँति लुप्त हो चुकी है।

उस वक्त मेरी अंतरंग मुलाकात गोविंदाचार्य जी से जैसे कई नेताओं से हुई थी। उन्होंने बड़ी गर्मजोशी और आत्मीयता से मुझे बाहों में भर कर गले लगाया और मेरा स्वागत किया। उनके मृदुल व्यवहार ने मुझे भाव विभोर कर दिया! 

बड़े ही सीधे साधे! 

एक  साधारण सा पजामा कुर्ता पहने! 

एक छोटे से कमरे में जितने साइज का आपको आज फ्लैटों में किचन देखने को मिल जायेगा उस में रहते थे। सामान के नाम पर एक छोटी साधारण मेज और उस पर रखे एक नोटबुक और पेन, एक कुर्सी और एक छोटी सी खाट सोने के लिए, एक खूंटी पर कुछ कपड़े टंगे हुए – बस यही था उनके कमरे में! 

सौम्यता के प्रकाश से आलोकित उनके चेहरे पर कोई घमंड नहीं, कोई अकड़ नहींनहीं! 

उनसे मिल कर तुरंत अपनेपन का सुखद अहसास महसूस हुआ, बड़े ही सुलझे हुए व्यक्तित्व, हिंदू- मुस्लिम की एकता में प्रबल विश्वास रखने वाले!

आज आर एस एस संघ में वो सादगी, वो अपनापन, सेवा भाव, ईमानदारी नहीं रह गई है। कोई स्पष्ट विचार धारा तो संघ भाजपा के पास कभी थी ही नहीं।

अटल बिहारी वाजपेयी जी ने जो कोशिश की थी 1990 के दशक में संघ भाजपा को एक समग्र मानवीय चेहरा देने की, वो आज फेल होती नजर आ रही है।

आज गत दस वर्षों में अपने प्रचारक नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री होने का अनुचित लाभ उठा कर आर एस एस एक कट्टर संघ में परिवर्तित हो चुका है, बेलगाम हो चुका है। यद्यपि यह सच है कि इसकी शाखाओं में आने वाले भोले भाले सदस्य और प्रचारक इस से अनभिज्ञ नजर आते हैं।

इस बुरे परिवर्तन का ही नतीजा है यशवंत सिन्हा, सत्य पाल मलिक् जैसे कई ईमानदार लोग भाजपा छोड़ कर चले गए।

अब तो यही समझ में आ रहा है कि गोविंदाचार्य जी ने जो अटल बिहारी वाजपेयी को आर एस एस का मुखोटा बताया था, वह बात सच थी। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के दस साल के शासन में ये मुखोटा अब उतर चुका है और आर एस एस का जो चेहरा नजर आ रहा है, भारत देश के लिए वह बड़ा ही डरावना और भयावह है… !

मैंने साल 1998 से भाजपा और उसके नेताओं नेत्रियों, सांसदों को बड़े करीब से देखा है, उनसे वार्तालाप किया है। सांसद अभिनेता विनोद खन्ना, यशवंत सिन्हा, दिलीप सिंह जुदेव, निवर्तमान मुख्यमन्त्री  शिवराज चौहान, सुमित्रा महाजन, उमा भारती, ‘न वाद न विवाद, केवल राष्ट्रवाद’ का मंत्र सतत जपने वाले सत्यनारायण जेटिया, चंद्रशेखर साहू …..!

ये सब नेता नेत्री एक अलग किस्म की मिट्टी के बने देखे मैंने। वे लोगों को जोड़ने की बात करते थे, तोड़ने की नहीं। वे सृजन का मधुर गीत गाते थे, विध्वंस का नहीं… !

परंतु, नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी किसी विध्वंसात्मक परग्रह से आई प्रतीत होती है। इनके आने से भाजपा टूटती जा रही है…!

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रहे यशवंत सिन्हा जैसे सुलझे नेता को भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह से तंग आ कर भाजपा छोड़नी पड़ी और भाजपा प्रत्याशी के विरुद्ध ही राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ना पड़ा।

इस बुरे विध्वंसात्मक बदलाव का सबसे प्रमुख कारक नरेंद्र मोदी में सूझ बूझ की भारी कमी है। यह इस बात से समझा जा सकता है कि यशवंत सिन्हा के पुत्र जयंत सिन्हा को वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाने के बावजूद वह उसके पिता यशवंत सिन्हा को भाजपा प्रत्याशी के विरुद्ध ही राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने से रोकने के लिए यशवंत सिन्हा को राजी नहीं कर सके। 

कौन बाप होगा जो उस दल के विरुद्ध जायेगा जिस दल ने उसके पुत्र को अहम वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री का महत्वपूर्ण पद दिया हो। पुत्र को अहम वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री पद मिलने के बावजूद यशवंत सिन्हा का भाजपा प्रत्याशी के विरुद्ध ही राष्ट्रपति का चुनाव लड़ना कहीं ना कहीं नरेंद्र मोदी में सूझ बूझ की भारी कमी पर ही मोहर लगाता है। 

कहने, लिखने को तो बहुत कुछ है। मगर आज सुनने, पढ़ने वाला कौन रह गया है...!

मेरा किसी भी भारतीय के प्रति दुराग्रह, द्वेष नहीं है भले ही वह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी क्यों न हो। परंतु, समाज और देश की प्रगति के लिए विचारों का आदान प्रदान और संवाद अति आवशयक होता है क्योंकि इसी से समाज और देश में सुधार के लिए विचार प्राप्त होते हैं। इसीलिए मैंने इतनी बेबाकी से अपने समसामयिक विचार इस लेख में संक्षेप में रेखांकित कर दिये हैं।

~ डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी

Dr Swaamee Aprtemaanandaa Jee

(The writer is an acclaimed independent Scientific Healer, yoga and ayurveda-Practitioner, Spiritual/Research/Political/Cosmic Scientist, Gynaecologist, Epidemiologist, Geostrategist, economic/political-Geographer, Geohumanist, Cosmologist, and citizen-Economist)

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