तो फिर मुझे यह सब दिखाई क्यों नहीं देता?

शिष्य सवाल करता है कि जब सारा संसार मेरे अंदर है, खंड ब्रम्हांड मेरे अंदर हैं, अकाल पुरुष मेरे अंदर है, मेरी जायदाद है, तो फिर मुझे यह सब दिखाई क्यों नहीं देता?

सवाल उचित है, गुरु नानक देव जी इसका बड़ा उचित जवाब देते हैं।

आम कहावत है कि खजाने पर सांप होता है। अगर हम खजाना लेना चाहें, तो यह जरूरी है, कि सांप को मार डालें। 

जिस तरह जब तक सांप पकड़ा न जाए, मारा न जाए, दौलत नहीं मिलती। इसी तरह 'नाम' का खजाना और अन्य सामान, बेशक इसके अंदर हैं। 

मगर हृदय पर, मन रूपी सर्प बैठा हुआ है, जो अंदर नहीं जाने देता। 

अब जो कुछ भी बयान किया है, यह जड़ नहीं और न ही शरीर में है, बल्कि यह सब मन के पर्दे के पीछे है। जब आप मन को पकड़ोगे, तो अंदर आपको सब खंड ब्रम्हांड मिलेंगे। 

शरीर में तो हाड़ मांस और लहू है। अगर कोई डॉक्टर चिरफाड करे, तो कुछ नहीं निकलता।

अब श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं कि यह जो हमारे शरीर की पिटारी है, इस पर मन रूपी सर्प बैठा हुआ है। हम सब पर मन का जहर चढ़ा हुआ है। 

मन रूपी सर्प के डसने से, कौन सा जहर चढ़ता है?  चोरी, ठगी, दुराचार, विषय-विकार आदि का। 

हमने मन के जरिए जो कर्म किए हैं, वे भोग रहे हैं और जो कर्म अब कर रहे हैं, उनका फल आगे भोगेंगे!!

(स्रोत: भारतीय लोक साहित्य, पंजाबी लोक साहित्य) 


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