तीन साधु थे, यात्रा कर रहे थे यमुना किनारे। उनमें तीसरा साधु जो था वो बुढा था, वृद्ध था, उसने कहा ''भाई हम इस गाँव के बाहर मन्दिर में आसन लगा के यहां रहेंगे। तुम तो जवान हो, तुम चलेे जाओ।"
तो दो जवान साधु आगे गये।
चलते-चलते संध्या हो गयी। दोनों साधुओं ने सोचा कि अब बरसाना आ रहा है, राधा रानी जी का गाँव, क्या करेंगे ? मांगेगे कहाँ ?
आपस में बोले कि मांगना कहाँ, हम तो राधारानी के मेहमान है, खिलाएगी तो खा लेंगे, नहीं तो मन्दिर में आरती के समय कहीं कुछ प्रसाद मिलेगा वो खा के पानी पी लेगें..!
साधुओं ने मज़ाक-मज़ाक में ऐसा कहा। वो साधु पहुंच गये बरसाना और बरसाना में आरती हुई, मन्दिर में उत्सव भी हुआ था।
साधु बाबा बोले - मांगेगे तो नहीं, राधारानी के मेहमान है। ऐसे कह कर साधु सो गये।
रात्रि में 11 बजे राधारानी जी के पुजारी को राधारानी जी ने ऐसा जगाया। राधा रानी बोली, ''मेहमान हमारे भूखे हैं, तू सो रहा है।"
पुजारी जी ने पूछा - मेहमान कौन है ?
राधा रानी जी ने कहा - वे दो साधु...।
पुजारी के तो होश-हवास उड़ गये, पुजारी उठे, सोये साधुओं को उठाया - तुम, तुम राधारानी के मेहमान हो क्या ?
साधु बोले - नहीं हम तो ऐसे ही...
पुजारी बोले - नहीं आप बैठो! हाथ-पैर धोये, पत्तले लायें और अच्छे से अच्छा जो मन्दिर का प्रसाद था, उत्सव का प्रसाद था, जो भी था, लड्डू, रसगुल्ले, खीर बस टनाटन पक्की रसोई जिमाई।
वो साधु थोड़ा टहल के बोले - राधा रानी जी। हमने तो मज़ाक में कहा था। तुमने सचमुच में हमको मेहमान बना लिया। माँ, हे राधे मैया...।
साधु राधारानी का चिन्तन करते-करते सो गये। दोनों साधुओं को एक जैसा सपना आया।
सपने में वो 12 साल की राधारानी बोलतीं है...
"साधु बाबा भोजन तो कर लिया आपने, तृप्त तो हो गये, भूख तो मिट गयी ? भोजन तो अच्छा रहा?" साधु बोले - हाँ।
"भोजन, जल आपको सुखद लगे ?"
साधु बोले - हाँ!
"अब कोई और आवश्यकता है क्या ?"
साधु बोले नहीं- नहीं मैया!
राधारानी बोलीं - देखो वो पुजारी डरा-डरा तुमको भोजन तो कराया! लेकिन मेरा पान बीडे का प्रसाद देना भूल गया! लो! ये मैं पान बीडा देती हूँ आपको!"
ऐसा कहकर उनके सिरहाने पर रखा दिया।
सपने में देख रहे हैं कि राधारानी जी सिरहाने पर पान बीडा रख रही है। ऐसे ही उनकी आँख खुल गई।
देखा तो सचमुच में पान बीड़ा सिरहाने पर है दोनों साधुओं के!
मेरी राधा प्यारी की कृपा का क्या कहना..!
जय जय श्री राधे!
"कौन कहता है कि
दिल्लगी बर्बाद करती है.....
निभाने वाली लाडो हो
तो दुनिया याद करती है....!!"
राधे राधे!
जय जय श्री राधे कृष्णा!
प्रस्तुतिकर्ति:
सुजाता कुमारी,
सर्वोपरि संपादिका,
आत्मीयता पत्रिका
(स्रोत: सर्वाधिक प्रचारित लोकप्रिय भारतीय जनसाहित्य और इंटरनेट पर मुफ़्त में उपलब्ध छाया चित्र)
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