एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु जी से पूछा- गुरु जी! गुरु के दर्शन करने से क्या लाभ होता है?
गुरु जी ने कहा- इस रास्ते पर चला जा, और जो भी सबसे पहले मिले, उससे पूछ लेना।
शिष्य उस रास्ते पर गया तो उसे सबसे पहले एक कौवा मिला, और उसने कौवे से पूछा- गुरु के दर्शन करने से क्या लाभ होता है?
शिष्य के यह पूछते ही वो कौवा मर गया।
शिष्य वापस अपने गुरु जी के पास आया और सब हाल बताया।
गुरु जी ने कहा- पास वाले गांव में, एक गाय ने एक बछड़ा दिया है, उससे जाकर यह सवाल पूछो।
वो शिष्य वहांं पहुंंचा और जब उस बछड़े के आगे यही सवाल किया, तो वो बछड़ा भी मर गया।
शिष्य भागा-भागा अपने गुरु जी के पास आया और सब हाल बताया।
अब गुरु जी ने कहा- यहां से दूसरे गांव में एक किसान के घर में जा, वहां एक बच्चा पैदा हुआ है, उससे यही सवाल करना।
शिष्य बोला- गुरु जी! अगर वो बच्चा भी मर गया, तो?
गुरु जी ने कहा- तेरे सवाल का जवाब वही देगा।
अब वो शिष्य उस घर में गया और जब उस बच्चे के पास कोई भी नहीं था तो उसने पूछा- गुरु के दर्शन करने से क्या लाभ होता है?
वो बच्चा बोला- मैंने खुद तो नहीं किए, लेकिन तू जब पहली बार गुरु जी के दर्शन करके मेरे पास आया था, तो मुझे कौवे की योनि से मुक्ति मिली थी और एक बछड़े का जन्म मिला था। फिर तू जब दूसरी बार गुरु जी के दर्शन करके मेरे पास आया था, तो मुझे बछड़े की योनि से मुक्ति मिली और एक इंसान का जन्म मिला, सो इतना बड़ा होता है गुरु के दर्शन करने का फल, फिर चाहे वो दर्शन आंतरिक हों या बाहरी।
तात्पर्य
------ ऐ सत्गुरू! मेरी नजरों को कुछ ऐसी खुदाई दे ------
------ कि जिधर भी देखूं, उधर तू ही तू दिखाई दे ------
------ कर दे ऐसी कृपा आज इस दास पर ------
------ कि जब भी बैठूं सिमरन में, तू ही तू दिखाई दे ------
(स्रोत: भारतीय जनश्रुतियाँ)
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