समस्या का सामना करना ही जीवन है - श्री कृष्ण


पहली बात महाभारत के युद्ध में कर्ण ने भगवान श्री कृष्ण जी से‌ पूछी- मेरी मां ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया, क्या ये मेरा अपराध था कि मेरा जन्म एक अवैध बच्चे के रूप में हुआ था?
दूसरी बात महाभारत के युद्ध में कर्ण ने भगवान श्री कृष्ण जी से पूछी- दोर्णाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से मना कर दिया था, क्योंकि वो मुझे क्षत्रिय नहीं मानते थे, क्या ये मेरा कसूर था?
तीसरी बात महाभारत के युद्ध में कर्ण ने भगवान श्री कृष्ण जी से पूछी- द्रौपदी के स्वयंवर में मुझे अपमानित किया गया, क्योंकि मुझे किसी राजघराने का कुलीन व्यक्ति नहीं समझा गया था।
भगवान श्री कृष्ण जी मंद-मंद मुस्कुराते हुए कर्ण से बोले- सुन हे कर्ण! मेरा जन्म जेल में हुआ था।
मेरे पैदा होने से पहले ही मेरी मृत्यु मेरा इंतजार कर रही थी।
जिस रात मेरा जन्म हुआ, उसी रात मुझे माता-पिता से अलग होना पड़ा था।
मैंने गायों को चराया और गायों के गोबर को अपने हाथों से उठाया।
जब मैं चल भी नहीं पाता था, तब मेरे ऊपर प्राणघातक हमले हुए।
मेरे पास कोई सेना नहीं थी, कोई शिक्षा नहीं थी, कोई गुरुकुल नहीं था और कोई महल नहीं था, फिर भी मेरे मामा ने मुझे अपना सबसे बड़ा शत्रु समझा था।
बड़ा होने पर मुझे ऋषि संदीपनि जी के आश्रम में जाने का अवसर मिला था।
जरासंध के प्रकोप के कारण मुझे अपने परिवार को यमुना से ले जाकर सुदूर प्रांत समुद्र के किनारे द्वारका में बसना पड़ा था।
हे कर्ण! किसी का भी जीवन चुनौतियों से रहित नहीं है और सभी के जीवन में सभी कुछ ठीक नहीं होता है।
सत्य क्या है और उचित क्या है- ये हम अपनी आत्मा की आवाज से स्वयं निर्धारित करते हैं।
इस बात से कोई भी फर्क नहीं पड़ता है, कि कितनी बार हमारे साथ अन्याय होता है।
इस बात से कोई भी फर्क नहीं पड़ता है, कि कितनी बार हमारा अपमान होता है।
और इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता है, कि कितनी बार हमारे अधिकारों का हनन होता है।
फर्क तो सिर्फ इस बात से पड़ता है कि हम उन सबका सामना किस प्रकार ज्ञान के साथ करते हैं।"
किसी कवि ने ठीक ही कहा है 
"ज्ञान है तो जिंदगी हर पल मौज है,
वर्ना समस्या तो सभी के साथ रोज है...!"

(स्रोत:अज्ञात श्रद्धालु)
प्रस्तुतकर्ती:
सुजाता कुमारी 

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