10 दिन की जद्दोजहद के बाद एक आदमी अपनी "कोरोना नेगटिव" की रिपोर्ट हाथ मे लेकर अस्पताल के रिसेप्शन पर खड़ा था।
आसपास कुछ लोग तालियां बजा रहे थे, उसका अभिनंदन कर रहे थे।
जंग जो जीत कर आया था वो!
लेकिन, उस शख्स के चेहरे पर बेचैनी की गहरी छाया थी।
गाड़ी से घर के रास्ते भर उसे याद आता रहा "आइसोलेशन" नामक खतरनाक दौर का वो मंजर।
न्यूनतम सुविधाओं वाला छोटा सा वह कमरा, अपर्याप्त उजाला, मनोरंजन के किसी साधन की अनुपलब्धता, कोई बात नही करता था और ना ही कोई नजदीक आता था। खाना भी बस प्लेट में भरकर सरका दिया जाता था।
कैसे गुजारे उसने 10 दिन वही जानता था।
घर पहुचते ही स्वागत में खड़े उत्साही पत्नी, बच्चों को छोड़ कर वो शख्स सीधे घर के एक उपेक्षित कोने के कमरे में गया, माँ के पावों में पड़ कर रोया और उन्हें लेकर बाहर आया।
पिता की मृत्यु के बाद पिछले 5 वर्ष से एकांतवास/ आइसोलेशन भोग रही माँ से कहा,"माँ! मुझे माफ कर दीजिएगा! मैंने आपको बहुत सताया है। आज से आप हम सब एक साथ एक जगह पर ही रहेंगे!"
माँ को लगा कि "बेटे की नेगटिव रिपोर्ट" उन की जिंदगी की "पॉजिटिव रिपोर्ट" हो गयी...!
प्रस्तुतकर्ती:
सुजाता कुमारी
प्रस्तुतिकरण की दिनांक: १५ अक्टूबर,२०२०
प्रकाशन की दिनांक: १५ नवम्बर,२०२०
(स्रोत: भारतीय जनश्रुतियां)
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