इन्तहा हुई जुल्म की
जुल्म अब बर्दाश्त नहीं,
इन्तहा हुई सितम की
सितम अब बर्दाश्त नहीं!
...अबला को ही शस्त्र थमा दो
गर तुम रक्षा ही कर न पाओ,
शस्त्र चलाना भी सिखा दो
शस्त्र चलाना भी सिखा दो
गर तुम रक्षा ही कर न पाओ!
सजा में ये कानून बनाओ,
जिसने भी डाला तेजाब
जिसने भी डाला तेजाब
उसपे भी ये ही डलवाओ...!
मानवता भी जल गई,
सत्ताईयों के पैतरों की
बातें सबको खल गई!
तीन सोई हुई बहनें
तेजाब से झुलसा दी गईं,
दुष्टों की इस दुष्टाई से
हर रूह दहला दी गई!
कह "कुछ हुआ ही नहीं",
शीर्ष नेता के श्रीमुख से
शब्द तक निकला ही नहीं!
उच्च अदालत ने लिया
घोर अन्याय का संज्ञान,
12 से 20 दिन देकर
समय का भी नहीं रखा भान!
आग ठंडी हुई नहीं
दिन रात हो रहे दुराचार,
अबलाओं पर जुल्मों का
सिलसिला है लगातार!
जारी ही है बलात्कार,
संस्कार सभ्यता की होली है
नारी पर हर अत्याचार!
नेताओं के घर घर जाकर
चुल्लु भर पानी पहुंचाओ,
साथ संदेश भी दे आओ
'डूब के इसमें तुम मर जाओ'!
एक सुर में आवाज़ उठा
नर पिशाचों को होश में लाओ,
हिमायतियों सह सभी को
कुकर्मों का सबक सिखाओ!
राजनीति को यहीं थमाओ,
लगा आरोप आपस में
मुंह पे न अपने कालिख लगाओ!
...अबला को ही शस्त्र थमा दो
गर तुम रक्षा ही कर न पाओ,
...शस्त्र चलाना भी सिखा दो
गर तुम रक्षा ही कर न पाओ!
-आवेश हिन्दुस्तानी
(संपर्क सूत्र: व्हाटसऍप WhatsApp - +91 9765906498)
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