मनुष्य पर आजीवन ॠण रहता है। मनुष्य किसी से लिया हुआ प्रत्यक्ष ॠण तो उतार सकता है परंतु अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य पर ॠण को वो कभी भी नहीं उतार सकता है।
ॠण सिर्फ वो ही नहीं है जो हम किसी से धन-धान्य के रूप में या वस्तु के रूप में लेते हैं, इस तरह के ॠण को तो हम क्षमता और परिस्थितियों के आधार पर उतार सकते हैं, परंतु वह ॠण जो हम पर परोक्ष रूप से होता है, माता-पिता के प्यार का ॠण और उनके द्वारा हमें जन्म देकर इस संसार में लाने का ॠण, हम उसे कभी भी नहीं उतार सकते हैं, और सबसे बड़ा ॠण यही है हमारे जीवन का।
विषम परिस्थितियों में हमें बिना बताए किसी के द्वारा परोक्ष रूप से की गई हमारी सहायता का ॠण और प्रत्यक्ष रूप से की गई सहायता का ॠण भी हम नहीं उतार सकते हैं। सम्भव है कि उसे उसका धन लौटाकर हम समानता ला सकते हैं, परंतु वह ॠण उतारने की श्रेणी में बिल्कुल भी नहीं आता है।
वो गुरु जो हमें शिक्षा देकर समाज में कुछ करने के और बनने के योग्य बनाता है, उसे हम गुरुदक्षिणा देते हैं, परंतु इससे उनका ॠण हम नहीं उतार सकते हैं।
हम जीवन पर्यंत ॠणी रहते हैं। हमारा जीवन ही एक ॠण है। इस जीवन रूपी ॠण को हम सत्कर्म से, दया से, दान से, धर्म से या सेवा से सहज और साकार कर सकते हैं, इससे शायद हमारे ॠण कम हो सकते हैं पर समाप्त नहीं हो सकते हैं।
(सौजन्य: अज्ञात श्रद्धालु)
ॠण सिर्फ वो ही नहीं है जो हम किसी से धन-धान्य के रूप में या वस्तु के रूप में लेते हैं, इस तरह के ॠण को तो हम क्षमता और परिस्थितियों के आधार पर उतार सकते हैं, परंतु वह ॠण जो हम पर परोक्ष रूप से होता है, माता-पिता के प्यार का ॠण और उनके द्वारा हमें जन्म देकर इस संसार में लाने का ॠण, हम उसे कभी भी नहीं उतार सकते हैं, और सबसे बड़ा ॠण यही है हमारे जीवन का।
विषम परिस्थितियों में हमें बिना बताए किसी के द्वारा परोक्ष रूप से की गई हमारी सहायता का ॠण और प्रत्यक्ष रूप से की गई सहायता का ॠण भी हम नहीं उतार सकते हैं। सम्भव है कि उसे उसका धन लौटाकर हम समानता ला सकते हैं, परंतु वह ॠण उतारने की श्रेणी में बिल्कुल भी नहीं आता है।
वो गुरु जो हमें शिक्षा देकर समाज में कुछ करने के और बनने के योग्य बनाता है, उसे हम गुरुदक्षिणा देते हैं, परंतु इससे उनका ॠण हम नहीं उतार सकते हैं।
हम जीवन पर्यंत ॠणी रहते हैं। हमारा जीवन ही एक ॠण है। इस जीवन रूपी ॠण को हम सत्कर्म से, दया से, दान से, धर्म से या सेवा से सहज और साकार कर सकते हैं, इससे शायद हमारे ॠण कम हो सकते हैं पर समाप्त नहीं हो सकते हैं।
(सौजन्य: अज्ञात श्रद्धालु)
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