राधा रानी

राधा रानी-
बरसाने मे एक सेठ रहते थे उनके  तीन चार  दुकाने थी अच्छी तरह चलती थीं।तीन बेटे तीन बहुएं थी सब आज्ञाकारी पर सेठ के मन मे एक इच्छा थी ।उनके बेटी नही थी। संतो के दर्शन से चिन्ता कम हुई संत बोले मन में आभाव हो उस पर भगवान का भाव स्थापित कर लो...
सुनो सेठ तुमको  मिल्यो  बरसाने का वास।
यदि मानो नाते राधे सुता काहे रहत उदास ।।
 सेठ जी ने राधा  रानी का एक चित्र  मंगवाया  और  अपने  कमरे मे लगा कर पुत्री भाव से रहते रोज सुबह  राधे राधे  कहते  भोग लगाते और दुकान से लौटकर राधे राधे  कहकर सोते।

तीन बहु बेटे है घर मे सुख सुविधा है  पूरी।
संपति भरि भवन रहती नही कोई मजबूरी।।
कृष्ण कृपासे जीवनपथ पेआती न कोई बाधा।
मै  बहुत  बड़भागी पिता हुं मेरी बेटी है राधा ।।

     एक दिन  एक मनिहारी चूड़ी पहनाने  सेठ के हाते मे दरवाजे के पास आ गयी चूड़ी पहनने की गुहार लगाई ।तीनो बहुऐ  बारी बारी से चूड़ी पहन कर चली गयी । फिर एक हाथ और बढ़ा  तो मनिहारीन सोची कि कोई  रिश्तेदार  आया होगा उसने चूड़ी पहनाया और  चली गयी।
    सेठ के  दुकान पर  पहुच कर पैसे मांगे  और  कहा कि  इस बार पैसे पहले से ज्यादा चाहिए । सेठजी बोले कि  क्या चूड़ी मंहगी हो गयी है तो मनिहारीन  बोली नही सेठजी आज मै चार लोगो को  चूड़ी पहना कर आ रही हूं।सेठ जी ने कहा कि तीन बहुओं के  अलावा  चौथा कौन है  झूठ मत बोल यह ले तीन का पैसा  मै घर पर पूछूँगा  तब एक का पैसा दूँगा ।  अच्छा! मनिहारीन  तीन का पैसा  ले कर चली गयी।
       सेठजी  घर पर पूछा कि चौथा कौन था जो चूड़ी  पहना है बहुऐ  बोली कि हम तीन के अलावा तो  कोई भी  नही था। रात को सोने  से पहले पुत्री राधारानी  को स्मरण करके सो  गये। नींद मे राधा जी प्रगट हुईं सेठजी  बोले "बेटी बहुत उदास हो  क्या  बात है ।" बृषभानु दुलारी  बोली,
         "तनया बनायो तात नात ना निभायो
          चूड़ी पहनि लिनी मै जानि पितु गेह
          आप मनिहारीन को मोल ना चुकायो
          तीन बहु याद किन्तु बेटी नही याद रही
          कहत श्रीराधिका को नीर भरि आयो है
          कैसी भई दूरी कहो कौन मजबूरी हाय
          आज चार चूड़ी काज मोहि बिसरायो है
  सेठजी की नींद टूट गयी पर नीर नही टूटी रोते रहे सुबेरा हुआ स्नान  ध्यान  करके मनिहारीन के  घर सुबह  सुबह  पहुँच गये । मनिहारीन  देखकर चकित हुई। सेठ जी आंखोमे आंसू  लिये  बोले
       धन धन भाग तेरो मनिहारीन
       तोरे से बड़भागी नही कोई
       संत महंत पुजारी
       धन धन भाग तेरो मनिहारीन
  मनिहारीन  बोली क्या  हुआ सेठ आगे बोले
"मैने मानी सुता किन्तु निज नैनन नही निहारिन
  चूड़ी पहनगयी तव कर ते श्री बृषभानु दुलारी
  धन धन भाग तेरो मनिहारीन
  बेटी की चूड़ी पहिराई लेहु जाहू तौ बलिहारी
  जन राजेश जोड़ि कर  करियो चूक हमारी
  जुगल नयन जलते भरि मुख ते कहे न बोल
  मनिहारीन  के पांय पड़ि लगे चुकावन मोल।"
मनिहारीन सोची
जब तोहि मिलो अमोल धन
अब काहे  मांगत मोल
ऐमन मेरो प्रेम से श्रीराधे राधे बोल।
श्रीराधे राधे बोल श्रीराधे राधे बोल।।
।। श्री राधे राधे जी।।
।।जय जय श्री राम।।
।।हर हर महादेव।।
-पं.ऋषि राज मिश्र,(ज्योतिष आचार्य)
9717838787,9718838787
कानपुर

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