स्वार्थ और परमार्थ में संतुलन ही सच्चा आनंददायक भक्ति-योग है - जनता और शासकों के लिए प्रेरणादायक कथा!

एक राजा बहुत दिनों से विचार कर रहा था कि वो अपना राजपाट छोड़कर अध्यात्म में समय लगाए।
राजा ने इस बारे में बहुत सोचा और फिर अपने गुरु को अपनी सारी समस्याएं बताते हुए कहा- गुरु जी! मुझे राज्य का कोई योग्य वारिस नहीं मिल पा रहा है।
चूंकि मेरा बच्चा अभी छोटा है इसलिए वो राजा‌ बनने के योग्य नहीं है।
जब भी मुझे कोई पात्र इंसान मिलेगा, जिसमें कि राज्य संभालने के सारे गुण हों, तो मैं अपना सारा राजपाट छोड़कर शेष जीवन अध्यात्म के लिए समर्पित कर दूंगा।
गुरु ने कहा- तुम राज्य की बागडोर मेरे हाथों में क्यों नहीं दे देते हो?
क्या तुम्हें मुझसे भी ज्यादा पात्र या ज्यादा सक्षम कोई और इंसान मिल सकता है?
राजा ने कहा- गुरु जी! मेरे राज्य को आपसे अच्छी तरह भला और कौन संभाल सकता है?
लीजिए! मैं इसी समय अपने राज्य की बागडोर आपके हाथों में सौंप देता हूं।
गुरु ने पूछा- अब तुम क्या करोगे?
राजा बोला- गुरु जी! अब मैं राज्य के खजाने से थोड़े-बहुत पैसे ले लूंगा, जिससे कि मेरा बाकी का जीवन चल जाए।
गुरु ने कहा- मगर अब खजाना तो मेरा है और मैं तुम्हें एक पैसा भी नहीं लेने दूंगा।
राजा बोला- फिर ठीक है गुरु जी! मैं कहीं पर कोई छोटी-मोटी नौकरी कर लूंगा और उससे जो कुछ भी मिलेगा मैं अपना गुजारा कर लूंगा।
गुरु ने कहा- अगर तुम्हें काम ही करना है तो मेरे यहां एक नौकरी खाली है।
क्या तुम मेरे यहां नौकरी करना चाहोगे?
राजा बोला- बिल्कुल गुरु जी! चाहे कोई भी नौकरी हो, मैं करने के लिए तैयार हूं।
गुरु ने कहा- मेरे यहां राजा की नौकरी खाली है।
मैं चाहता हूं कि तुम मेरे लिए यह नौकरी करो और हर महीने राज्य के खजाने से अपनी तनख्वाह लेते रहना।
एक वर्ष बाद गुरु ने वापस लौटकर देखा कि राजा बहुत ही खुश था।
अब तो दोनों ही काम हो रहे थे।
जिस अध्यात्म के लिए राजा अपना राजपाट छोड़ना चाहता था वो भी चल रहा था और राज्य संभालने का काम भी बहुत ही अच्छी तरह से चल रहा था।
अब राजा को कोई भी चिंता नहीं थी।

व्याख्या
इस कहानी से हमें यह समझ में आएगा, कि वास्तव में क्या परिवर्तन हुआ?
कुछ भी तो नहीं...!
राज्य वही, राजा वही और काम वही।
बस! दृष्टीकोण बदल गया।
इसी तरह हम भी जीवन में अपना दृष्टीकोण बदलें।
मालिक बनकर नहीं, बल्कि यह सोचकर सारे कार्य करें कि मैं ईश्वर की नौकरी कर रहा हूं और अब ईश्वर ही जानें। और फिर अपना सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दें।
तभी हम अपनी हर समस्या और हर परिस्थिति में खुशहाल रह पाएंगे।
हमने देखा भी होगा कि नौकरों को किसी भी तरह की बिल्कुल भी कोई चिंता नहीं रहती है, मालिक का चाहे फायदा हो या नुक्सान हो, वे मस्त रहते हैं।
(साभार: अज्ञात भक्तियोगी)

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