तुलसीदास जब वृन्दावन गए!
तुलसीदास उस समय वृन्दावन में ही ठहरे
थे। वे भंडारों में विशेष रुचि नहीं रखते थे लेकिन भगवान शंकर ने गोस्वामीजी को नाभा जी के भंडारे में जाने की आंतरिक प्रेरणा दी।
तुलसीदास जी ने भगवान शंकर की आज्ञा का पालन किया और नाभा जी के भंडारे में जाने के लिए चल दिए। लेकिन थोड़ी देर हो गई। जब गोस्वामी जी वह पहुंचे तो वह संतो की बहुत भीड़ थी उनको कही बैठने की जगह नहीं मिली तो जहा संतो के जूते-चप्पल(पनहियाँ) पड़े थे वो वही ही बैठ गए। अब सभी संतजन भंडारे का आनंद ले रहे थे और अपने अपने पात्र साथ लए थे जिसमे प्रसाद डलवा रहे थे। आज भी वृन्दावन के रसिक संत भंडारे में अपने-अपने पात्र लेकर जाते है। तुलसीदास जी कोई पात्र(बर्तन) नही लाये।
अब भंडारा भी था तो खीर का था क्योकि हमारे बांकेबिहारी को खीर बहुत पसंद है आज भी राजभोग में 12 महीने खीर का ही भोग लगता है, अब जो प्रसाद बाँट रहा था वो गोस्वामी जी के पास आये और कहा बाबा -तेरो पात्र कहा है तेरो बर्तन कहा है। बर्तन हो तो कुछ जवाब दे। उसने कहा की बाबा जाओ कोई बर्तन लेकर आओ, मै किसमें तोहे खीर दूँ। इतना कह कर वह चला गया थोड़ी देर बाद फिर आया तो देखा बाबा जी वैसे ही बैठे है ,फिर उसने कह बाबा मैंने तुमसे कहा था की बर्तन ले आओ मै तोहे किस्मे खीर दूँ ?
इतना सुनते ही तुलसी दास मुस्कराने लगे और वही पास में एक संत का जूता पड़ा था वो जूता परोसने वाले के सामने कर दिया और कहा इसमें खीर डाल दो।
तो वो परोसने वाला तो क्रोधित को उठा बोला – बाबा! पागल होए गयो है का-इसमें खीर लोगे? उलटी सीधी सुनाने लगा संतो में हल चल मच गई श्री नाभा जी वहाँ दौड़े आये।
तो गोस्वामी जी के आँखों में आंसू भर आये और कहा की ये जूता संत का है और वो भी वृन्दावन के रसिक संत का , और इस जूते में ब्रजरज पड़ी हुई है और ब्रजरज जब खीर के साथ अंदर जाएगी तो मेरा अंतःकरण पवित्र हो जायेगा।
जैसे ही सबने गोस्वामी जी की ये बात सुनी तो उनके चरणों पर गिर पड़े। सर्व वन्ध महान संत के ऐसे दैन्य को देखकर सब संत मंडली अवाक् रह गई सबने उठकर प्रणाम किया। उस परोसने वाले ने तो शतवार क्षमा प्रार्थना की।
ऐसे है तुलसीदास जी महाराज।
धन्य है वृन्दावन! धन्य है वह रज जहा पर हमारे प्यारे और प्यारी जू के चरण पड़े है, ये भूमि राधारानी की भूमि है यदि हम वृन्दावन में प्रवेश करते है तो समझ लेना की ये राधारानी की कृपा है जो हमें वृन्दावन आने का न्यौता मिला!
- आचार्य रिषीराज
(साभार: आचार्य रिषीराज)
(Foto: Courtesy Dr Swaamee Aprtemaanandaa Jee)
तुलसीदास उस समय वृन्दावन में ही ठहरे
तुलसीदास जी ने भगवान शंकर की आज्ञा का पालन किया और नाभा जी के भंडारे में जाने के लिए चल दिए। लेकिन थोड़ी देर हो गई। जब गोस्वामी जी वह पहुंचे तो वह संतो की बहुत भीड़ थी उनको कही बैठने की जगह नहीं मिली तो जहा संतो के जूते-चप्पल(पनहियाँ) पड़े थे वो वही ही बैठ गए। अब सभी संतजन भंडारे का आनंद ले रहे थे और अपने अपने पात्र साथ लए थे जिसमे प्रसाद डलवा रहे थे। आज भी वृन्दावन के रसिक संत भंडारे में अपने-अपने पात्र लेकर जाते है। तुलसीदास जी कोई पात्र(बर्तन) नही लाये।
अब भंडारा भी था तो खीर का था क्योकि हमारे बांकेबिहारी को खीर बहुत पसंद है आज भी राजभोग में 12 महीने खीर का ही भोग लगता है, अब जो प्रसाद बाँट रहा था वो गोस्वामी जी के पास आये और कहा बाबा -तेरो पात्र कहा है तेरो बर्तन कहा है। बर्तन हो तो कुछ जवाब दे। उसने कहा की बाबा जाओ कोई बर्तन लेकर आओ, मै किसमें तोहे खीर दूँ। इतना कह कर वह चला गया थोड़ी देर बाद फिर आया तो देखा बाबा जी वैसे ही बैठे है ,फिर उसने कह बाबा मैंने तुमसे कहा था की बर्तन ले आओ मै तोहे किस्मे खीर दूँ ?
इतना सुनते ही तुलसी दास मुस्कराने लगे और वही पास में एक संत का जूता पड़ा था वो जूता परोसने वाले के सामने कर दिया और कहा इसमें खीर डाल दो।
तो वो परोसने वाला तो क्रोधित को उठा बोला – बाबा! पागल होए गयो है का-इसमें खीर लोगे? उलटी सीधी सुनाने लगा संतो में हल चल मच गई श्री नाभा जी वहाँ दौड़े आये।
तो गोस्वामी जी के आँखों में आंसू भर आये और कहा की ये जूता संत का है और वो भी वृन्दावन के रसिक संत का , और इस जूते में ब्रजरज पड़ी हुई है और ब्रजरज जब खीर के साथ अंदर जाएगी तो मेरा अंतःकरण पवित्र हो जायेगा।
जैसे ही सबने गोस्वामी जी की ये बात सुनी तो उनके चरणों पर गिर पड़े। सर्व वन्ध महान संत के ऐसे दैन्य को देखकर सब संत मंडली अवाक् रह गई सबने उठकर प्रणाम किया। उस परोसने वाले ने तो शतवार क्षमा प्रार्थना की।
ऐसे है तुलसीदास जी महाराज।
धन्य है वृन्दावन! धन्य है वह रज जहा पर हमारे प्यारे और प्यारी जू के चरण पड़े है, ये भूमि राधारानी की भूमि है यदि हम वृन्दावन में प्रवेश करते है तो समझ लेना की ये राधारानी की कृपा है जो हमें वृन्दावन आने का न्यौता मिला!
- आचार्य रिषीराज
(साभार: आचार्य रिषीराज)
(Foto: Courtesy Dr Swaamee Aprtemaanandaa Jee)
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