अहंकार का विष (मर्मस्पर्शी कहानी) IMMORTAL TALES

एक धनी सेठ का सोने में तुलादान हुआ और फिर उस सोने को गरीबों में बांटा गया। 

उसी गांव में एक महात्मा जी रहते थे। उनके पास कुछ भी नहीं था। सेठ ने उन्हें भी बुलवाया कि आ कर वह भी कुछ सोना ले जा जाएं। 

महात्मा जी आए तो सेठ ने कहा,"आज मैंने सोना बंटवाया है। थोड़ा-सा आप भी ले लें तो बड़ी कृपा होगी।"

महात्मा जी बोले,"सेठ जी, आपने अच्छा किया। लेकिन मुझे सोने से क्या लेना-देना?"

सेठ के अहंकार को चोट लगी।

 उसने कठोर स्वर में कहा,"सोने की किसे जरूरत नहीं होती?"

महात्मा जी ने सेठ के अहंकार को देखकर कहा,"मैं कभी दान नहीं लेता। मेरा परमात्मा मुझे उतना दे देता है जितने की मुझे जरूरत होती है। फिर भी यदि आपका आग्रह है तो इस तुलसी के पत्ते जितना सोना दे दीजिए।"

इतना कहकर महात्मा जी ने तुलसी के एक पत्ते पर राम-नाम लिखकर सेठ को दे दिया।

सेठ का अहंकार अब और भी तीव्र हो गया। वह बोला,"आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं। मेरे घर में सोने की बिल्कुल भी कमी नहीं है। आप गरीबी में रहते हैं, इसीलिए मैं आपकी सहायता करना चाहता था।"

महात्मा जी ने कहा,"ठीक है! आप इस पत्ते की तौल का सोना मुझे दे दें!"

सेठ ने खीझकर तराजू मंगवाया और उसके एक पलड़े में उस पत्ते को रख दिया। 

लेकिन यह क्या! 

दूसरे पलड़े में सोना चढ़ाते गए, चढ़ाते गए। फिर भी तुलसी के पत्ते वाला पलड़ा जरा सा भी नहीं उठा। यहां तक कि वो हिला तक भी नहीं।

सेठ हक्का-बक्का रह गया। 

फिर उसने अपनी भूल समझी और महात्मा जी के चरणों में सिर झुकाकर बोला,"महात्मा जी! मेरी धृष्टता को क्षमा कर दीजिए। अहंकार ने मेरी आंखों पर पर्दा डाल दिया था और आज आपने वो पर्दा हटा दिया। मैं आपका बहुत ही आभारी हूं। वाकई, सच्चे धनी तो आप ही हैं!"

फिर महात्मा जी ने बड़े ही प्रेम से कहा,"सेठ जी! धन से अहंकार आता है तो वह धन विष के समान बन जाता है। और यदि धन से इंसान विनम्र बनता है तो वह धन अमृत हो जाता है। परमात्मा ने यदि आपको अमीर बनाया है तो इसे उसकी कृपा मानो और अपने जीवन को सफल बनाओ!"

सारांश 

इस प्रेरक काल्पनिक कहानी का सारांश यह है कि अनियंत्रित अहंकार से विनाशकारी ओर ज्यादा विनाशकारी कुछ भी नहीं है। अहंकार जैसे ही आता है, वैसे ही वह अपने साथ बहुत सी बुराईयां साथ में लेकर ही आता है। जब इंसान अहंकार के नशे में चूर होता है, तब उसे अच्छा और बुरा कुछ भी नहीं दिखाई देता है। अतः हमें इससे बचना चाहिए।

यदि परमात्मा ने हमें सब कुछ दिया है तो हमें हर एक पल उसका शुक्रिया अदा करते रहना चाहिए! तभी हम अहंकार से और बुरे कर्म करने से बच सकते हैं! नहीं तो हमारा विनाश निश्चित है क्योंकि परमात्मा की लाठी में आवाज नहीं होती है। लेकिन पड़ती बड़ी जोर से है...!


प्रस्तुतिकर्ति

सुजाता कुमारी, 

सर्वोपरि संपादिका, 

आत्मीयता पत्रिका

(स्रोत: सर्वाधिक प्रचारित लोकप्रिय भारतीय जनसाहित्य और इंटरनेट, सोशल मीडिया, व्हाट्सएप्प, एक्स पर मुफ़्त में उपलब्ध छायाचित्र,  चलचित्रिका और सामग्री)

Comments