"जिस तरह चाहे नचा ले तू!
इशारे पे मुझे ए तकदीर!
तेरे ही तो लिखे हुए अफ़साने
की एक किरदार हूँ मैं!"
“फ़िक्र करेंदे बावरे
ते ज़िक्र करें दे साध ,
उठ फ़रीदा ज़िक्र कर
ते फ़िकर करेगा आप!”
कितना बड़ा संदेश दिया है फ़रीद साहिब ने इन दो पंक्तियों में! हम सारा जीवन फ़िक्र में गुज़ार देते हैं, गुरु का ज़िक्र ही नहीं करते। वो कह रहे हैं कि हे बंदे! गुरु का ज़िक्र कर, फ़िक्र वो तेरी ख़ुद ही कर लेगा!
(स्रोत: सर्वाधिक प्रचारित लोकप्रिय भारतीय जनसाहित्य)
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