सेवा ज़ोर , ज़बरदस्ती , व् अहंकार से नहीं बल्कि प्रेम , आस्था और शान्ति से करनी चाहिए ।
सेवा स्वार्थ के लिए नहीं परमार्थ के लिए करनी चाहिए ।
सेवा के पश्चात किसी भी फल की
अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए ।सेवा में कोई भी ऊंचा या नीचा नहीं होता ।
सेवा की कभी तुलना नहीं करनी चाहिए ।
सेवा का कभी अहंकार नहीं करना चाहिए ।
सेवा कभी अच्छी या बुरी नहीं होती सेवा तो बस सेवा होती है ।
मौके देखे सेवा करने के ।
याद रखें हमें सतगुरुजी सेवा इसलिए बख्शते हैं, ताकि हम और बेहतर इंसान बनसके ।
हमें भी उस मालिक को दिल में रखते हुए निष्काम व निस्वार्थ सेवा करनी चाहिए , ताकि मालिक की दया और मेहर हम पर बनी रहे ।
(स्रोत: भारतीय जनश्रुतियाँ)
Comments