महाराज बाबा सावन सिंह जी का एक सत्संगी ठाकर सिंह भजन नहीं करता था। एक दिन महाराज जी नें उसको कहा: "ठाकर सिंह; 15 दिन बाद तुमने चोला छोड देना है"!
अब वो बहुत घबराया और लगा प्रार्थना करने कि आप लेख में मेख मार दो! मैं अभी मरना नहीं चाहता! महाराज जी नें कहा: "ठाकर सिंह; मैं तो भाणे का फकीर हूं! जब मेरा जवान 32 साल का बेटा चोला छोड रहा था; मैंने तो तब भी बाबाजी से फरियाद नहीं की! तो अब तेरे लिये क्यों करूं? तू भजन कर"!
ठाकर सिंह नें कहा: "सच्चे पातशाह; सच्ची बात तो ये है कि मैंने कभी भजन किया ही नहीं".!
महाराज जी नें कहा:"चल; अब 15 दिन हैं; अब कर ले! बैठने की जांच है कि भूल गया?"
उसनें कहा: "जी बैठने की जांच तो है"! महाराज नें उसको सामने बैठाया और कहा : "ध्यान कहां लगाना है; ये याद है कि नहीं?" ठाकुर सिंह ने कहा: "जी; वो तो भूल गया!"
महाराज जी नें अपने हाथ का अँगूठा उसके माथे पे लगाकर कहा ;"यहां ध्यान लगाना है"! अँगूठा माथे पे लगते ही वो पीछे की तरफ गिर गया; और अँदर चला गया!
जब बाहर आया; तो महाराज जी नें पूछा: "क्यों ठाकर सिंह; ये देशअच्छा है कि वो देश?"
ठाकर सिंह नें कहा; "जी; उस देश की क्या बात है! न मिट्टी; न गंदगी! सोचने से पहले ही चीज हाजिर हो जाती है! वहां तो सुख ही सुख है! आप तो मुझे जल्दी से वहीं भेज दो! अब मैं यहां नहीं रहना चाहता"! महाराज जी नें कहा: "भेज देंगे 15 दिन के बाद"! ठाकर सिंह नें कहा: "हुजूर; मुझे तो ये 15 साल की तरह लग रहे हैं"!
महाराज जी नें कहा: "तुमसे कहा तो था; भजन करो! अगर करते; तो सबर संतोष भी आ जाता"! ठाकर सिंह बोला: "महाराज; ये भी तो आपकी गल्ती है"! महाराज जी नें कहा:"क्यों? मैंने तुमको भजन का तरीका नहीं सिखाया था?" ठाकर सिंह नें कहा:"जी; वो तो सिखाया था; लेकिन माथे पे अँगूठा थोडी लगाया था"! महाराज जी और वहां मौजूद संगत खिलखिला के हंस पडे!
(स्रोत: भारतीय लोक साहित्य)
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