गुरु आज्ञा मानै नहीं, चलै अटपटी चाल

"गुरु आज्ञा मानै नहीं, 

चलै अटपटी चाल। 

लोक वेद दोनो गये, 

आगे सिर पर काल।।"                  

अर्थात

"जो गुरु के आदेशों को नहीं मानता है और मनमाने ढंग से चलता है उसके दोनों लोक परलोक व्यर्थ हो जाते है और भविष्य में काल मौत उसके सिर मंडराती रहती है।" 

शरीर एक प्रकार का किला है जिसमें दस द्वार खुलते हैं, नौ संसार की ओर खुलते हैं, दसवां सचखंड की ओर, यह दसवां द्वार परमात्मा ने केवल छिपाकर ही नहीं रखा बल्कि वज्र कपाटों से बंद भी किया हुआ है, इसे खोलने की केवल एक युक्ति है "नाम शब्द अभ्यास"! 

(स्रोत: राधा स्वामी सत्संग ब्यास) 

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