बहना उठा लो हौसला प्रश्न पूछने का! (जनहित की रामायण - 29)

गेहूं में घुण, 
आदिकाल से सुन रहे,

अब हम गेहूं छोड़, 

घुण ही चुन रहे !

घुणों की ही धूम 

सारे गलियारों में,

न जाने क्यूं ऐसे

 ताने बाने बुन रहे ? 


ज्वलंत जनप्रश्नों की, 
चर्चाएं ही गुल हैं,

इन्हीं के सारे तोते,

इन्हीं की बुलबुल हैं !

भावनात्मक खेल 

सबपे पड़ता भारी,

इसमें उलझना हमरी 

सबसे बड़ी भूले हैं !!


तीन टांग पर आज 
जैसे तैसे टंगी है,

विशालकाय नेतृत्व 

अनुभव से बनी है !

बयानों में होने लगा 

स्वबल का बखान,

दुई टांग पे टिकन का

भी बल नहीं है !!



कुछेक अंश आज 
घुटनों पर गिर रहा है,

अमूमन संस्थागत ढांचे का 

दम घुट रहा है !

धर्मगुरुओं का राजनीति में 

रहा था दबदबा,

अब हर विरोध पर भी 

चाबुक चल रहा है !!


जन जन से अनुरोध है, 
जाने जनशक्ति का दम,

इसी तरह और पिसते 

नहीं रह सकते हम !

पिसते 

नहीं रह सकते हम ,

सीधे सीधे प्रश्न उठाने का 

जुटा लो सखी री हौसला,

चमन में लहराए फिर से 

जनहित का परचम !!


- आवेश हिंदुस्तानी 20.06.2021

(संपर्क सूत्र: व्हाटसऍप WhatsApp -  +91 9765906498) 

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