सुपारी प्रवृति और प्रकृति

सुपारी सही नहीं सेहत के लिये,

सुपारी सही  नहीं सभ्यता के लिये !

सुपारी सही नहीं कारोबार के लिये,

सुपारी सही नहीं संसार के लिये !!


सुपारी के दौर की लाचारी में,

सुपारी पैंतरे पनप रहे महामारी में !

सच खोज थक गया हर आदमी,

चारों खंबे शौकीन हुए सुपारी के !!


सुपारी शाषित हो गया है ये संसार,

सभी को सुहा रहा सुपारी संस्कार !

सुपारी ही है न्याय का अंतिम द्वार,

सुपारी से बनती बिगड़ती सरकार !!


भावनात्मक सुपारियां पनप रही है ,

अपराधिक सुपरियां फूल फल रही है !

सच के चहीते लगने लगे है गुन्हेगार,

झूठ पे झूठ की तूती बज रही है !!


ना जाने कब जमाना लेगा करवट,

या प्रकृति को ही देने होंगे और सबक !

प्रकृति प्रकोपों को सह पायेंगे हम कब तक ?

आओ मिलकर शुरु करें प्रायश्चित हम सब !!


- आवेश हिन्दुस्तानी 22.01.2021

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